हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता
है। इस बार ये व्रत 12 अक्टूबर, गुरुवार को है। इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र
के लिए व्रत रखती हैं और शाम को पूजन करने के बाद ही भोजन करती हैं। इस व्रत की
विधि इस प्रकार है-
व्रत व पूजन विधि
अहोई व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके
संतान की लंबी उम्र व सुखी जीवन के लिए कामना करते हुए यह संकल्प लें- मैं अहोई
माता का व्रत कर रही हूं, अहोई
माता मेरी संतान को लंबी उम्र, स्वस्थ
एवं सुखी रखे। पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही
सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। शाम को इन चित्रों की पूजा करें।
अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई
बनाई जाती है, जिसे सेह या स्याहु कहते हैं।
इस सेह की पूजा रोली, चावल, दूध व भात से की जाती है। पूजा
चाहे आप जिस विधि से करें, लेकिन
दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की
कथा सुनें। पूजा के बाद सासू मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके
बाद ही अन्न जल ग्रहण करें।
ये है अहोई अष्टमी व्रत की कथा
किसी नगर में चंपा नाम की एक महिला रहती थी। उसके विवाह को 5 साल होने के बाद भी उसकी कोई
संतान नहीं थी। तब एक वृद्ध महिला ने उसे अहोई अष्टमी व्रत करने की सलाह दी। चंपा
की पड़ोसन चमेली ने भी देखा-देखी संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखा।
चंपा ने श्रद्धा से व्रत किया और चमेली ने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए। व्रत से
प्रसन्न होकर देवी ने चंपा और चमेली को दर्शन दिए।
देवी ने उनसे वरदान मांगने को कहा- चमेली ने झट से एक पुत्र मांग लिया, जबकि चंपा ने विनम्र भाव से कहा कि- मां तो सब जानती हैं, बिना मांगे ही मेरी इच्छा पूरी कीजिए। तब देवी ने कहा कि- उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं। वहां जो बच्चा तुम्हें अच्छा लगे, उसे अपने घर ले आना। यदि न ला सकी तो तुम्हें संतान नहीं मिलेगी। चंपा व चमेली दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगी। बच्चे रोने लगे और भागने लगे।
चंपा से उनका रोना नहीं देखा गया। उसने कोई भी बच्चा नहीं पकड़ा पर चमेली ने एक रोते हुए बच्चे को बालों से कसकर पकड़ लिया। देवी ने चंपा की दयालुता की प्रशंसा करते हुए उसे पुत्रवती होने का वरदान दिया पर चमेली को मां बनने में अयोग्य सिद्धि कर दिया। इस तरह श्रद्धापूर्वक अहोई माता की पूजा करने से चंपा को योग्य पुत्र की प्राप्ति हुई।
देवी ने उनसे वरदान मांगने को कहा- चमेली ने झट से एक पुत्र मांग लिया, जबकि चंपा ने विनम्र भाव से कहा कि- मां तो सब जानती हैं, बिना मांगे ही मेरी इच्छा पूरी कीजिए। तब देवी ने कहा कि- उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं। वहां जो बच्चा तुम्हें अच्छा लगे, उसे अपने घर ले आना। यदि न ला सकी तो तुम्हें संतान नहीं मिलेगी। चंपा व चमेली दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगी। बच्चे रोने लगे और भागने लगे।
चंपा से उनका रोना नहीं देखा गया। उसने कोई भी बच्चा नहीं पकड़ा पर चमेली ने एक रोते हुए बच्चे को बालों से कसकर पकड़ लिया। देवी ने चंपा की दयालुता की प्रशंसा करते हुए उसे पुत्रवती होने का वरदान दिया पर चमेली को मां बनने में अयोग्य सिद्धि कर दिया। इस तरह श्रद्धापूर्वक अहोई माता की पूजा करने से चंपा को योग्य पुत्र की प्राप्ति हुई।
आरती श्री अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय
अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
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