Tuesday, October 31, 2017

भगवान कृष्ण की पूजा करते समय ये 6 नियम कभी नहीं भूलने चाहिए

भगवान विष्णु ने वैसे तो कई अवतार लिए हैं, लेकिन इनमें से सबसे अधिक लोकप्रिय अवतार है श्री कृष्ण। माना जाता है कि ठाकुरजी की सेवा यदि मन लगाकर की जाए तो घर में कभी धन-धान्य व सुख समृद्धि की कमी नहीं होती आइए जानते हैं ठाकुरजी की पूजा के लिए कौन सी चीजें जरूरी मानी गई हैं। काैन से हैं वो खास नियम जिन्हें उनकी पूजा के दौरान कभी नहीं भूलना चाहिए।

1. आचमन
आचमन, यानि पूजा से पूर्व हाथों को जल धोने की क्रिया, में उपयोग किए जाने वाले जल को आचमनीय कहा जाता है। यह शुध जल और सुगंधित फूलों का मिश्रण होता है।

2. आसन
कृष्ण पूजा में सबसे जरूरी होता है आसन, जिस पर भगवान कृष्ण की स्थापना की जाती है। इसका रंग तेज और चमकीला, जैसे लाल, पीला, नारंगी, हो तो बेहतर रहेगा।

3. पाघ
जिस बर्तन में भगवान कृष्ण के पांव धोए जाते हैं उसे पाघ कहा जाता है। पूजा करने से पहले पाघ में स्वच्छ जल और फूलों की पंखुड़ियां डालें और उससे भगवान कृष्ण के चरणों को धोएं।

4. पंचामृत
दूध, दही, घी, शहद और चीनी के मिश्रण से पंचामृत बनाकर उसे किसी शुद्ध बर्तन में भरें और फिर उस पंचामृत से भगवान कृष्ण को भोग लगाएं। याद रहे कृष्ण बिना तुलसी के भोग ग्रहण नहीं करते हैं।

5.पंचोपचार
पूजा में उपयोग होने वाली दूर्वा घास, कुमकुम, चावल, अबीर, सुगंधित फूल और शुद्ध जल को पंचोपचार या अनुलेपन नाम दिया गया है। श्रीकृष्ण में इन सभी का होना आवश्यक होता है।

6. भोग
अगर घर में श्रीकृष्ण की पूजा रखवाई गई है तो पूजा के दौरान श्रीकृष्ण को जो भोज लगाया जाता है उसमें ताजे फल, मिठाइयां, लड्डू, मिश्री, खीर, तुलसी के पत्ते और फल शामिल होते हैं।

Monday, October 30, 2017

पद्म पुराणः भगवान श्रीराम ने क्यों तोड़ा रामसेतु, क्या जानते हैं आप?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, लंका पर चढ़ाई करते समय भगवान श्रीराम के कहने पर वानरों और भालुओं ने रामसेतु का निर्माण किया था, ये बात हम सभी जानते हैं। लेकिन जब श्रीराम विभीषण से मिलने दोबारा लंका गए, तब उन्होंने रामसेतु का एक हिस्सा स्वयं ही तोड़ दिया था, ये बात बहुत लोग जानते हैं। इससे जुड़ी कथा का वर्णन पद्म पुराण के सृष्टि खंड में मिलता है।
श्रीराम इसलिए गए थे लंका
पद्म पुराण के अनुसार, अयोध्या का राजा बनने के बाद एक दिन भगवान श्रीराम को विभीषण का विचार आया। उन्होंने सोचा कि रावण की मृत्यु के बाद विभीषण किस तरह लंका का शासन कर रहे हैं, उन्हें कोई परेशानी तो नहीं है। जब श्रीराम ये सोच रहे थे, उसी समय वहां भरत भी आ गए। भरत के पूछने पर श्रीराम ने उन्हें पूरी बात बताई। ऐसा विचार मन में आने पर श्रीराम ने लंका जाने की सोची। भरत भी उनके साथ जाने को तैयार हो गए। अयोध्या की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंपकर श्रीराम व भरत पुष्पक विमान पर सवार होकर लंका चले गए।
जब श्रीराम से मिले सुग्रीव और विभीषण

पुष्पक विमान से लंका जाते समय रास्ते में किष्किंधा नगरी आती है। श्रीराम व भरत थोड़ी देर वहां ठहरते हैं और सुग्रीव से अन्य वानरों से भी मिलते हैं। जब सुग्रीव को पता चलता है कि श्रीराम व भरत विभीषण से मिलने लंका जा रहे हैं, तो वे उनके साथ हो गए। रास्ते में श्रीराम भरत को वह पुल दिखाते हैं, जो वानरों व भालुओं ने समुद्र पर बनाया था। जब विभीषण को पता चलता है कि श्रीराम, भरत व सुग्रीव लंका आ रहे हैं तो वे पूरे नगर को सजाने के लिए कहते हैं। विभीषण श्रीराम, भरत व सुग्रीव से मिलकर बहुत प्रसन्न होते हैं।
श्रीराम ने इसलिए तोड़ा था सेतु

श्रीराम तीन दिन तक लंका में ठहरते हैं और विभीषण को धर्म-अधर्म का ज्ञान देते हैं और कहते हैं कि तुम हमेशा धर्म पूर्वक इस नगर पर राज्य करना। जब श्रीराम पुन: अयोध्या जाने के लिए पुष्पक विमान पर बैठने लगे तो विभीषण ने उनसे कहा कि श्रीराम आपने जैसा मुझसे कहा है, ठीक उसी तरह मैं धर्म पूर्वक राज्य करूंगा। लेकिन इस सेतु (पुल) के मार्ग से जब मानव यहां आकर मुझे सताएंगे, उस स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए? विभीषण के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अपने बाणों से उस सेतु के दो टुकड़े कर दिए। फिर तीन भाग करके बीच का हिस्सा भी अपने बाणों से तोड़ दिया। इस तरह स्वयं श्रीराम ने ही रामसेतु तोड़ा था।

Saturday, October 28, 2017

अक्षय नवमी पर होती है आंवला पेड़ की पूजा, महत्व और पूजन विधि


कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी कहते हैं। दिवाली के लगभग 10 दिनों बाद और कार्तिक मास में होने वाली इस पूजा को आंवला नवमी भी कहते हैं। कार्तिक मास में वैसे तो स्नान का अपना ही महत्व होता हैलेकिन इस दिन स्नान करने से अक्षय प्राप्त होता है। हिंदू रीति रिवाज में इस दिन शादी-शुदा महिलाएं व्रत रखती हैं और कथा भी सुनती हैं। 
क्या है महत्व
इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न दान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का नियम है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अतिप्रिय है, क्योंकि इसमें लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए इसकी पूजा करना माना विष्णु लक्ष्मी की पूजा करना। इस दिन व्रत करने से शादीशुदा औरतों की सभी मनोकामना पूरी होती है। 
आंवला के पेड़ के नीचे साफ सफाई करके पूजा करें। 

क्या करना चाहिए
इस दिन गुप्त दान करना शुभ माना जाता है। आंवला के पेड़ के नीचे 10 दिनों तक भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दीया जलाया जाता है, एक धागा बांधकर मनोकामनाएं मांगी जाती है। परिक्रमा कर रक्षा सूत्र बांधा जाता है। पंडितों का मानना है कि ये पूजा सालों से चली आ रही है। इसी पेड़ के नीचे बैठकर व्रती खाना भी खाती हैं। ये तिथि बहुत ही शुभ होती है। इसलिए इस दिन कई शुभ काम शुरू किए जाते हैं। नवमी के दिन जगद्धात्री पूजा होती है। पूरे दिन महिलाएं व्रती रहती हैं। 

इस विधि से करें आंवला वृक्ष का पूजन
आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें।
नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का विशेष महत्व है। यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर में भोजन बनाकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के बाद भोजन करना चाहिए। भोजन में सुविधानुसार खीर, पूड़ी या मिष्ठान्न हो सकता है।
आंवले के पेड़ के नीचे साफ सफाई करें, धो लें और फिर पूजा करके नीचे बैठकर खाएं। अगर पेड़ ना मिले तो उस दिन आंवला जरूर खाएं। बहुत शुभ होता है।

आंवले का रस मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नेगेटिव ऊर्जा होगी वह समाप्त हो जाएगी।सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ौतरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें। इस तरह मिलेंगे पुण्य, कटेंगे पाप।

Friday, October 27, 2017

छठ पर्व: इस विधि से करें सूर्यदेव की पूजा

छठ पूजा में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। सनातन धर्म  में सूर्य को साक्षात भगवान माना गया है, क्योंकि वे रोज हमें दर्शन देते हैं और उन्हीं के प्रकाश से हमें जीवनदायिनी शक्ति प्राप्त होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, रोज सूर्य की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

पूजा विधि
छठ की सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर शौच आदि कार्यों से निवृत्त होकर नदी के तट पर जाकर आचमन करें तथा सूर्योदय के समय शरीर पर मिट्टी लगाकर स्नान करें। इसके बाद पुन: आचमन कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और सप्ताक्षर मंत्र- ऊं खखोल्काय स्वाहा से सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
इसके बाद भगवान सूर्य को लाल फूल, लाल वस्त्र व रक्त चंदन अर्पित करें। धूप-दीप दिखाएं तथा पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। अंत में हाथ जोड़कर सूर्यदेव से प्रार्थना करें। इसके बाद नीचे लिखे शिव प्रोक्त सूर्याष्टक का पाठ करें-
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर मनोस्तु ते।।
सप्ताश्चरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्ममज्म।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यम्।।
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यम्।।
बृंहितं तेज:पुजं च वायु माकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज: प्रदीपनम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणामाम्यहम्।।
इस प्रकार सूर्य की उपासना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

जानिए छठ व्रत की रोचक कथा व महत्व
बहुत समय पहले शर्याति नाम के एक राजा थे। उनकी अनेक स्त्रियां थी, लेकिन उनकी एकमात्र संतान सुकन्या नामक पुत्री थी। राजा को अपनी पुत्री बहुत प्रिय थी। एक बार राजा शर्याति जंगल में शिकार खेलने गए। उनके साथ सुकन्या भी गईं। जंगल में च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे थे। ऋषि तपस्या में इतने लीन थे कि उनके शरीर पर दीमक लग गई थी। बांबी से उनकी आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं।
सुकन्या ने कौतुहलवश उन बांबी के दोनों छिद्रों में जहां ऋषि की आंखें थी, तिनके डाल दिए, जिससे मुनि की आंखें फूट गईं। क्रोधित होकर च्यवनऋषि ने श्राप दिया जिससे राजा शर्याति के सैनिकों का मल-मूत्र निकलना बंद हो गया। सैनिक दर्द से तपड़ने लगे। जब यह बात राजा शर्याति को मालूम हुई तो वह सुकन्या को लेकर च्यवनमुनि के पास क्षमा मांगने पहुंचे। राजा ने अपनी पुत्री के अपराध को देखते हुए उसे ऋषि को ही समर्पित कर दिया।
सुकन्या ऋषि च्यवन के पास रहकर ही उनकी सेवा करने लगी। एक दिन कार्तिक मास में सुकन्या जल लाने के लिए पुष्करिणी के समीप गई। वहां उसे एक नागकन्या मिली। नागकन्या ने सुकन्या को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना एवं व्रत करने को कहा। सुकन्या ने पूरी निष्ठा से छठ का व्रत किया जिसके प्रभाव से च्यवन मुनि की आंखों की ज्योति पुन: लौट आई।

सीता व द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा
मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन उपवास रखकर भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी के दिन व्रत पूर्ण किया। पवित्र सरयू के तट पर राम-सीता के इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएं में हारकर जंगल-जंगल भटक रहे थे, तब इस दुर्दशा से छुटकारा पाने के लिए द्रौपदी ने सूर्यदेव की आराधना के लिए छठ व्रत किया। इस व्रत को करने के बाद पांडवों को अपना खोया हुआ वैभव पुन: प्राप्त हो गया था।

संतान को लंबी उम्र प्रदान करती हैं षष्ठी देवी
धर्म शास्त्रों के अनुसार, षष्ठी देवी प्रमुख मातृ शक्तियों का ही अंश स्वरूप है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखण्ड के अनुसार, परमात्मा ने सृष्टि की रचना के लिए स्वयं के शरीर को दो भागों में विभक्त कर लिया। दक्षिण भाग से पुरुष तथा वाम भाग से स्त्री (प्रकृति) का जन्म हुआ। यहां प्रकृति शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गई है- प्र अर्थात सत्वगुण, कृ अर्थात रजोगुण व ति अर्थात तमोगुण

त्रिगुणात्मस्वरूपा या सर्वशक्तिसमन्विता।
प्रधानसृष्टिकरणे प्रकृतिस्तेन कथ्यते।।
(
ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखंड 1/6)
उपर्युक्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री ये ही प्रकृतिदेवी स्वयं को पांच भागों में विभक्त करती है- दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री। ये पांच देवियां पूर्णतम प्रकृति कहलाती हैं।
मार्कण्डेयपुराण के अनुसार- स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु। प्रकृति के एक प्रधान अंश को देवसेना कहते हैं जो सबसे श्रेष्ठ मातृका मानी जाती है। ये समस्त लोकों के बालकों की रक्षिका देवी हैं। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी को ही षष्ठी देवी कहा गया है।
षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता।
बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी।
सततं शिशुपाश्र्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी।।
(
ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड 43/4/6)
यह षष्ठी देवी नवजात शिशुओं की रक्षा करती हैं तथा उन्हें आरोग्य व दीर्घायु प्रदान करती हैं। इन षष्ठी देवी का पूजन ही कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है।

छठ मैया ने किया था ये चमत्कार
श्रीमद्देवी भागवत पुराण के अनुसार- स्वायम्भुव मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को अधिक समय बीत जाने के बाद भी कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को चरू (प्रसाद) दिया, जिससे गर्भ तो ठहर गया, किंतु मृत पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रियवत उस मृत बालक को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवत ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। मृत बालक को भूमि पर रखकर राजा ने उस देवी को प्रणाम किया और पूछा- हे सुव्रते! आप कौन हैं?
देवी ने आगे कहा- तुम मेरा पूजन करो और अन्य लोगों से भी कराओ। इस प्रकार कहकर देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। राजा ने उसी दिन घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। चूंकि यह पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी, अत: इस विधि को षष्ठी देवी/छठ देवी का व्रत होने लगा।

Thursday, October 26, 2017

आशीर्वाद पाने के लिए घर में रखें इन चीजों का ध्यान

सनातन धर्म से जुड़े कुछ ऐसे रिति रिवाज़ भी है। जिनका ध्यान रखने पर घर पर ईश्वरीय कृपा बनी रहती है। साथ ही, कभी भी बड़ी दुख व तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ता है। आइए जानते हैं कौन से हैं वो शास्त्रीय नियम

पूजा-पाठ
जिस घर में पूजा-पाठ से जुड़ी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाता है और नियमित रूप से भगवान की सेवा की जाती है वहां कोई भी दुख-तकलीफ नहीं आती। पूजा से जुड़े शास्त्रीय नियमों का ध्यान रखने पर सकारात्मक ऊर्जाएं आसपास अपना बसेरा बनाकर रहती हैं और परिवारजनों की सुख-समृद्धि और सुरक्षा का ध्यान रखती हैं।

तुलसी
तुलसी को शक्ति स्वरूपा माना जाता है, ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी का पूजन रोजाना होता है उस घर में कभी कोई कमी नहीं होती है। तुलसी के जरिए घर में प्रवेश करने वाली हवा अमृत समान होती है। जो लोग नित्य सुबह तुलसी को जल चढ़ाते हैं उनके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा हमेशा रहती है और परिवारजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। साथ ही साथ घर में धन-धान्य की भी कोई कमी नहीं होती।

एकाक्षी नारियल
जिस घर या परिवार में एकाक्षी नारियल की पूजा की जाती है, उस घर में ईश्वर की कृपा हमेशा मौजूद रहती है। इसे लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखने पर कभी पैसों की तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है।

गोबर
गाय के गोबर को अत्याधिक पवित्र माना जाता है, महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार गाय के गोबर में महालक्ष्मी का निवास होता है। इसलिए जिस जगह गाय के गोबर को लीपा जाता है, वहां पवित्रता हमेशा रहती है। साथ ही साथ देवी लक्ष्मी की कृपा भी वहां बरसती रहती है, ऐसे घर में धन-दौलत हमेशा रहती है।

मंदिर
पश्चिम दिशा की तरफ मुंह रखकर पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। वहीं मंदिर का दरवाजा अगर पूर्व दिशा की ओर हो तो अच्छा माना जाता है। प्रवेश द्वार के ठीक सामने ईश्वर की मूर्ति नहीं होनी चाहिए। घर के जिस भी भाग में मंदिर की स्थापना की जाए, वहां ध्यान रखें कि सूर्य की रोशनी वहां अवश्य पहुंचे। ऐसे हालातों में कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाएंगी।