Friday, February 3, 2017

श्रीराम और सीता से सीखें गृहस्थी में किन बातों का ध्यान रखें

भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम के जीवन में बहुत परेशानियां थीं, लेकिन सीता के साथ उनका रिश्ता दूसरों के लिए एक प्रेरणा रहा है। श्रीराम और सीता ने 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया, इसके बाद सीता हरण और रावण से युद्ध जैसी बड़ी-बड़ी परेशानियां उनके जीवन में आईं, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण बनाए रखा। रावण वध (विजयादशमी) के बाद अगले दिन यानी आज की तिथि एकादशी पर श्रीराम और सीता का मिलन हुआ था। इस अवसर पर यहां जानिए श्रीराम और सीता के वैवाहिक जीवन से कौन-कौन सी बातें सीख सकते हैं...

एक-दूसरे के प्रति होना चाहिए समर्पण
श्रीरामचरित मानस के एक प्रसंग में जब श्रीराम और सीता ने विवाह के बाद पहली बार बात की तो भगवान ने सीता को वचन दिया कि वे जीवनभर उसी के प्रति निष्ठावान रहेंगे। उनके जीवन में कभी कोई दूसरी स्त्री नहीं आएगी। सीता ने भी वचन दिया कि हर सुख और दुख में वे साथ रहेंगी।

श्रीराम और सीता ने पहली बातचीत में भरोसे और समर्पण का वादा किया। इस वचन के कारण दोनों ही एक-दूसरे के सुख के लिए सोचते थे और कभी भी इनके जीवन में अहंकार और व्यक्तिगत रुचियां नहीं आईं।

जबश्रीराम को जाना था वनवास

जब श्रीराम को वनवास जाना था तो उस समय वे चाहते थे सीता मां कौशल्या के पास ही रुक जाएं। जबकि सीता श्रीराम के साथ वनवास जाना चाहती थीं। कौशल्या भी चाहती थीं कि सीता वनवास न जाए। इस विषय पर सीता की इच्छा और श्रीराम, कौशल्या की इच्छा अलग-अलग थी। आज के समय में सास, बहू और बेटा, इन तीनों के बीच मतभेद होते हैं तो परिवार में तनाव बढ़ जाता है, लेकिन रामायण में श्रीराम के धैर्य, सीताजी और कौशल्याजी की समझ से सभी मतभेद दूर हो गए।

श्रीराम ने सीता को समझाया कि वन में कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ेगा। वहां भयंकर राक्षस होंगे, सैकड़ों सांप होंगे, वन की धूप, ठंड और बारिश भी भयानक होती है, समय-समय पर मनुष्यों को खाने वाले जानवरों का सामना करना पड़ेगा, तरह-तरह की विपत्तियां आएंगी। इन सभी परेशानियों का सामना करना बहुत ही मुश्किल होगा। इस प्रकार समझाने के बाद भी सीता नहीं मानीं और वनवास जाने के लिए श्रीराम को मना लिया।

सीता ने श्रीराम के प्रति समर्पण का भाव दर्शाया और अपने जीवन साथी के साथ वे भी वनवास गईं। समर्पण की इसी भावना की वजह से श्रीराम और सीता का वैवाहिक जीवन आदर्श माना गया है।

केवट के सामने सीता ने ऐसे समझी श्रीराम के मन की बात

केवट ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और निषादराज को अपनी नाव में बैठाकर गंगा नदी पार करवा दिया। नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचकर श्रीराम और सभी नाव से उतर गए, तब श्रीराम के मन में कुछ संकोच हुआ।

इस संबंध में श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-

पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी।।

कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई।।

इस दोहे का अर्थ यह है कि जब सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखे तो सीता ने तुरंत ही अपनी अंगूठी उतारकर उस केवट को भेंट में देनी चाही, लेकिन केवट ने अंगूठी नहीं ली। केवट ने कहा कि वनवास पूरा करने के बाद लौटते समय आप मुझे जो भी उपहार देंगे मैं उसे प्रसाद समझकर स्वीकार कर लूंगा।

सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखते ही समझ लिया कि वे केवट को कुछ भेंट देना चाहते हैं, लेकिन उनके पास देने के लिए कुछ नहीं था। यह बात समझते ही सीता ने अपनी अंगूठी उतारकर केवट को देने के लिए आगे कर दी। यह प्रसंग बताता है कि पति और पत्नी के बीच ठीक इसी प्रकार की समझ होनी चाहिए। वैवाहिक जीवन में दोनों की आपसी समझ जितनी मजबूत होगी, वैवाहिक जीवन उतना ही ताजगीभरा और आनंददायक बना रहेगा।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-FMT-family-management-tips-from-shri-ram-charit-manas-in-hindi-5149201-PHO.html

No comments:

Post a Comment