Tuesday, February 28, 2017

इस एक मंत्र के जाप से मिलता है संपूर्ण रामायण पढ़ने का फल

धर्म शास्त्रों के अनुसार, रामायण का पाठ करने से पुण्य मिलता है और पाप का नाश होता है, लेकिन वर्तमान समय में संपूर्ण रामायण पढ़ने का समय शायद ही किसी के पास हो। ऐसे में नीचे लिखे एक मंत्र का रोज विधि-विधान से जप करने से संपूर्ण रामायण पढ़ने का फल मिलता है। इस मंत्र को एक श्लोकी रामायण भी कहते हैं। यह मंत्र इस प्रकार है-

मंत्र


आदि राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।

जाप विधि


- सुबह जल्दी नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान श्रीराम की पूजा करें।
- भगवान श्रीराम के चित्र के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जाप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।
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आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।
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एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।

ये है एक श्लोकी भागवत, विधि-विधान पूर्वक इसका जाप करने से संपूर्ण श्रीमद्भागवत पढ़ने का फल मिलता है-

आदौ देवकी देव गर्भजननं, गोपी गृहे वद्र्धनम्।

माया पूज निकासु ताप हरणं गौवद्र्धनोधरणम्।।
कंसच्छेदनं कौरवादिहननं, कुंतीसुपाजालनम्।
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।।

जाप विधि


- सुबह जल्दी नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान श्रीकृष्ण के चित्र का विधिवत पूजन करें।
- भगवान श्रीकृष्ण के चित्र के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।
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आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।
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एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।

ये है एक श्लोकी दुर्गासप्तशती, विधि-विधान पूर्वक इसका जाप करने से संपूर्ण दुर्गासप्तशती पढ़ने का फल मिलता है-

या अंबा मधुकैटभ प्रमथिनी,या माहिषोन्मूलिनी,
या धूम्रेक्षण चन्ड मुंड मथिनी,या रक्तबीजाशिनी,
शक्तिः शुंभ निशुंभ दैत्य दलिनी,या सिद्धलक्ष्मी: परा,
सादुर्गा नवकोटि विश्व सहिता,माम् पातु विश्वेश्वरी

जाप विधि


- सुबह जल्दी नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवती दुर्गा के चित्र का विधिवत पूजन करें।
- माता दुर्गा के चित्र के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।
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आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।
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एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-this-is-the-ek-shloki-ramayan-mantra-news-hindi-5538008-PHO.html

Monday, February 27, 2017

देवताओं के इस छल की वजह से श्रीराम को जाना पड़ा था वनवास

लंका के राजा रावण और वहां के कई राक्षसों का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। भगवान राम के राज्याभिषेक की तैयारियां चल रही थीं। अगर श्रीराम का राजा के पद पर अभिषेक हो जाता, तो उनके जन्म के पीछे का मुख्य उद्देश्य अधूरा रह जाता। इसी बात से सभी देवता बहुत परेशान थे। अपनी परेशानी का हल निकालने के लिए सभी देवता देवी सरस्वती के पास गए और उनसे रानी कैकेयी की दासी मन्थरा की बुद्धि फेरने की प्रार्थना की। ताकि वह रानी कैकेयी को भड़का कर श्रीराम के लिए वनवास जाने का वर मांगे। देवी सरस्वती ने ऐसा ही किया। जिसके फलस्वरूप श्रीराम को चौदह वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा। वहां रहकर उन्होंने सभी राक्षसों का वध कर दिया।

राक्षसकुल में उत्पन्न होने पर भी विभीषण ने श्रीराम का साथ क्यों दिया था

रावण, कुंभकर्ण और विभीषण ब्रह्मा जी को खुश करके उनसे वरदान प्राप्त करना चाहते थे। वरदान पाने की इच्छा से वे तीनों ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करने लगे। तपस्या से खुश होकर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। ब्रह्मा जी के ऐसा करने पर रावण के मनुष्य के हाथों अपनी मृत्यु होने का और कुंभकर्ण ने अधिक समय कर नींद लेना का वर मांगा। जब ब्रह्मा जी ने विभीषण को वरदान मांगने को कहा, तब उसने किसी भी समय अपने मन में पाप का विचार ना उठने और अपना मन सदैव ही देव भक्ति में लगे रहने का वरदान मांगा था। इसी वरदान की वजह से राक्षसकुल में उत्पन्न होने पर भी विभीषण ने युद्ध में श्रीराम का साथ दिया था।

युद्ध के लिए भगवान इन्द्र ने दिया था श्रीराम को अपना रथ

रावण और श्रीराम की सेना के बीच घोर युद्ध चल रहा था। भगवान राम की सेना ने रावण के पक्ष के सभी वीर योद्धाओं का नाश कर दिया था। अपने पक्ष के सभी योद्धाओं का वध हो जाने पर भगवान श्रीराम से युद्ध करने के लिए खुद रावण युद्धभूमि में आया। भगवान श्रीराम धरती पर खड़े होकर युद्ध कर रहे थे और रावण रथ पर खड़ा था। यह देखकर भगवान इन्द्र ने अपना दिव्य रथ सारथी मातलि के साथ भगवान राम के प्रदान किया। उस रथ पर चढ़ने के बाद श्रीराम और रावण के बीच घोर युद्ध हुआ और अतः में भगवान राम ने रावण का वध कर दिया।

भरत ने अपने बाण से हनुमान को क्यों घायल कर दिया था

श्रीरामचरितमानस के लंकाकाण्ड के अनुसार, लक्ष्मण और मेघनाथ के बीच भीषण युद्ध चल रहा था। मेघनाथ के वार से लक्ष्मण बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। लक्ष्मण को स्वस्थ करने के लिए हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए पर्वत पर गए। उस पर्वत पर कई औषधियां होने के कारण हनुमान संजीवनी बूटी पहचान न सके और पर्वत ही उखाड़ कर ले जाने लगे। हनुमान उड़ते हुए अयोध्या के ऊपर पहुंच गए। आकाश में हनुमान का विशाल रूप देखकर भरत ने उसे राक्षस समझा और उन्हें तीर मार दिया। भरत के उस तीर से घायल हनुमान धरती पर गिर पड़े। हनुमान के पास जाने पर भरत ने हनुमान को राम भक्त जानकर उन्हें ठीक कर दिया।

Saturday, February 25, 2017

गणेशजी की 4 मूर्तियां, धन लाभ चाहते हैं तो इनकी पूजा करते रहना चाहिए

श्रीगणेश प्रथम पूज्य देव हैं और इनके अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने पर सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत गणेशजी के पूजन के साथ ही होती है, इससे कार्य में सफलता मिलती है, काम बिना किसी विघ्न (बाधा) के पूरा हो जाता है। यहां जानिए श्रीगणेश के 4 ऐसे स्वरूप, जिनकी पूजा से घर-परिवार पर देवी लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और दरिद्रता दूर होती है। विशेष पूजा हर रोज या किसी भी शुभ और श्रेष्ठ मुहूर्त में की जा सकती है।

1.हल्दी की गांठ से बने गणेश
हल्दी की ऐसी गांठ चुनिए, जिसमें श्रीगणेश की आकृति दिखाई दे रही हो। इस हल्दी की गांठ में गणेशजी का ध्यान करते हुए हर रोज पूजन करें। ये गणेश प्रतिमा भी पूजन के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। यदि सोने की धातु से बनी गणेश प्रतिमा नहीं है तो हल्दी से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन किया जा सकता है। सोने से बनी और हल्दी से बनी, गणेश प्रतिमा समान फल प्रदान करती है।

2.गोमय यानी गोबर से बनी गणेश मूर्ति

गाय को माता माना जाता है। गौमाता पूजनीय और पवित्र हैं। पुरानी परंपराओं के अनुसार गाय के गोबर यानी गोमय में महालक्ष्मी का निवास माना गया है। यही वजह है कि गोमय से बनी गणेश मूर्ति की पूजा, धन लाभ देने वाली मानी गई है। गोबर से गणेशजी की आकृति बनाएं और इस प्रकार तैयार की हुई गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पुराने समय में सुख-समृद्धि की कामना से हर रोज घर की जमीन पर गोबर लिपा जाता था। इससे घर का वातावरण पवित्र और सकारात्मक बना रहता है।

3.लकड़ी के गणेश

पेड़-पौधे भी पूजनीय और पवित्र माने गए हैं। प्राकृतिक रूप से खास वृक्षों की लकड़ी में भी लक्ष्मी का वास माना गया है। खास वृक्ष जैसे, पीपल, आम, नीम आदि। काष्ठ यानी लकड़ी से बनी भगवान गणेश की मूर्ति को घर के मुख्य दरवाजे के बाहर ऊपरी हिस्से पर लगाएं। हर रोज इस प्रतिमा की पूजा करने पर घर में वातावरण शुभ बना रहता है और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

4.श्वेतार्क गणेश

सफेद आंकड़े की जड़ में गणेशजी की आकृति (मूर्ति) बन जाती है। इसे श्वतार्क गणेश कहा जाता है। इस मूर्ति की पूजा से सुख-सौभाग्य बढ़ता है। रविवार या पुष्य नक्षत्र में श्वेतार्क गणेश की मूर्ति घर लेकर आएं और नियमित रूप से विधि-विधान के साथ पूजा करें। इस पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

ऐसे कर सकते हैं श्रीगणेश की सामान्य पूजा

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं। पीले वस्त्र धारण करें। भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा को पवित्र जल से स्नान कराएं। इसके बाद सिंदूर, पीला चंदन, पीले फूल, अक्षत, जनेऊ, पीला रेशमी वस्त्र, दूर्वा और लड्डू का प्रसाद अर्पित करें। श्रीगणेश की पूजन-आरती करें। गणेश मंत्र (ऊँ गं गणपतयै नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।
पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें।

इन मंत्रों का भी जप किया जा सकता है...

ऊँ गणाधिपाय नम:

ऊँ उमापुत्राय नम:

ऊँ विघ्ननाशनाय नम:

ऊँ विनायकाय नम:

ऊँ ईशपुत्राय नम:

ऊँ सर्वसिद्धप्रदाय नम:

ऊँ एकदन्ताय नम:

ऊँ इभवक्त्राय नम:

ऊँ मूषकवाहनाय नम:

ऊँ कुमारगुरवे नम:

इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JYO-RAN-worship-tips-for-ganeshji-in-hindi-for-prosperity-and-money-news-hindi-5535771-PHO.html

Friday, February 24, 2017

महाशिवरात्रि : पूजा, विधि व शुभ मुहूर्त

शिवपुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने तथा व्रत रखने से विशेष फल मिलता है। महाशिवरात्रि पर शिव पूजा की विधि इस प्रकार है-
व्रत विधि
महाशिवरात्रि की सुबह व्रती (व्रत करने वाला) जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद माथे पर भस्म का त्रिपुंड तिलक लगाएं और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें। इसके बाद समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग की पूजा करें। श्रृद्धापूर्वक व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-

शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।
यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए यह श्लोक बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।

इस प्रकार करें रात्रि पूजा

व्रती दिनभर शिव मंत्र (ऊं नम: शिवाय) का जाप करें तथा पूरा दिन निराहार रहें। (रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं।) शिवपुराण में रात्रि के चारों प्रहर में शिव पूजा का विधान है। शाम को स्नान करके किसी शिव मंदिर में जाकर अथवा घर पर ही पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके त्रिपुंड एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-

ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये
व्रती को फल, फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा, धूप व दीप से रात के चारों प्रहर पूजा करनी चाहिए साथ ही भोग भी लगाना चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जाप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती व परिक्रमा करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-

नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।

अगले दिन सुबह पुन: स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद व्रत का समापन करें।

रात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त
निशीथ काल पूजा का मुहूर्त- मध्य रात्रि 11:44 से 12:40 तक
पहले प्रहर की पूजा- शाम 06:18 से रात 09:20 तक
दूसरे प्रहर की पूजा- रात 09:20 से 12:40 तक
तीसरे प्रहर की पूजा- रात 12:40 से 03:45 तक
चौथे प्रहर की पूजा- रात 03:45 से सुबह 06:53 तक

महाशिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है-

किसी समय वाराणसी के जंगल में एक भील रहता था। उसका नाम गुरुद्रुह था। वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपना परिवार पालता था। एक बार शिवरात्रि पर वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी। उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा। यह सोचकर वह पानी का बर्तन भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था।
थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो। वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।
थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए। सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई।
इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर रात भर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई, जिससे शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया। इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप तत्काल ही भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।

शिव को प्रिय है ये रात्रि
फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह रात्रि भगवान शिव को अति प्रिय है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, शिवरात्रि के महत्व का वर्णन स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था। उसके अनुसार भगवान शिव अभिषेक, वस्त्र, धूप तथा पुष्प से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि शिवरात्रि के दिन व्रत उपवास रखने से होते हैं-

फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी।
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका।।
तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति मां ध्रुवम्।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत:।।

ईशानसंहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात को आदिदेव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवी महानिशि।
शिललिंगतयोद्भुत: कोटिसूर्यसमप्रभ:।

भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा ऊँ जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अद्र्धांगी धारा॥ ऊँ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ऊँ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ऊँ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ऊँ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ऊँ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्रत्रिशूल धर्ता। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ऊँ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ ऊँ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ऊँ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ऊँ जय शिव...॥
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-shivratri-pujan-vidhi-and-shubh-muhurat-news-hindi-5534726-PHO.html