Monday, August 8, 2016

मान्यता: भगवान शिव के ये दो अवतार हैं अमर, जानिए रोचक बातें

सावन (श्रावण) में शिव भक्ति का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव का विधि-विधान से पूजन आदि करने से वे प्रसन्न होकर भक्त की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। सावन के इस पवित्र महीने में हम आपको भगवान शिव से जुड़ी कुछ रोचक बातें बता रहे हैं जैसे- भगवान शिव के कौन से 2 अवतार अमर हैं, महाभारत में किस रूप में शिव का वर्णन मिलता है, शिव का ही पूजन लिंग रूप में क्यों और श्रावण का महत्व।

अमर हैं भगवान शिव के दो अवतार

संसार के कल्याण के लिए भगवान शिव ने भी अनेक अवतार लिए। हनुमान, दुर्वासा ऋषि, पिप्पलाद मुनि, भैरव, वीरभद्र, शरभावतार, अश्वत्थामा आदि भगवान शिव के प्रमुख अवतार हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार-

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात- अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय ये आठों अमर हैं।
इस श्लोक के अनुसार हनुमान और अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। हनुमानजी को अमरता का वरदान स्वयं माता सीता ने दिया था जबकि अश्वत्थामा को पृथ्वी पर रहने का श्राप भगवान श्रीकृष्ण ने दिया था।

महाभारत में भगवान शिव
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में भी अनेक स्थानों पर भगवान शिव का वर्णन मिलता है। महाभारत के एक प्रसंग में जब महर्षि वेदव्यास द्रौपदी के पूर्व जन्म के बारे में वर्णन करते हैं, तब वे बताते हैं कि द्रौपदी पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण कन्या थी। सर्वगुण संपन्न होने पर भी जब उसका विवाह नहीं हुआ तब उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उससे वर मांगने को कहा। तब उस ब्राह्मण कन्या ने कहा कि मुझे भरतवंशी पति चाहिए। ऐसा उसने पांच बार कहा। भगवान शिव ने उसे पांच भरतवंशी पुरुषों की पत्नी होने का वरदान दिया।
एक अन्य प्रसंग में जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या करते हैं। तब उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान किरात के वेष में आते हैं, अर्जुन से युद्ध भी करते हैं और प्रसन्न होकर उसे अपना पाशुपातस्त्र भी प्रदान करते हैं। काशीराज की पुत्री अंबा को भीष्म की मृत्यु का कारण बनने का वरदान भी भगवान शिव ने ही दिया था। महाभारत के ऐसे और भी कई प्रसंगों में शिवमहिमा का गुणगान किया गया है।

शिव की ही पूजा लिंग रूप में क्यों?

शिवमहापुराण के अनुसार, एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण इन्हें सकल (आकार सहित) भी कहा गया है। इस प्रकार भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो निष्कल व सकल दोनों हैं। शिव के निष्कल अर्थात निराकार स्वरूप का ही पूजन लिंग रूप में किया जाता है।

इसी तरह शिव के सकल अर्थात साकार स्वरूप का पूजन मूर्ति के रूप में किया जाता है। निष्कल व सकल रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा हैं। यही कारण है कि एकमात्र शिव का पूजन लिंग व मूर्ति के रूप में किया जाता है। शिव से भिन्न जो दूसरे देवता हैं, वे साक्षात ब्रह्म नहीं है। इसलिए उनकी पूजा मूर्ति रूप में नहीं होती।

जानिए श्रावण मास का महत्व

ज्योतिषीय दृष्टि से अगर देखा जाए तो श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र का योग बनता है, जिसके कारण इस मास का नाम श्रावण रखा गया। श्रावण मास के आध्यात्मिक पक्ष देखा जाए तो श्रावण का अर्थ होता है सुनना। श्रावण के इसी अर्थ को समझते हुए इस महीने में धार्मिक स्थानों पर सत्संग, प्रवचन व धर्मोपदेश दिए जाते हैं।
इस महीने में बादल आसमान पर डेरा डाले रहते हैं, जिसके कारण सूर्य की किरणें सीधे हम तक नहीं पहुंच पाती। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर न आने के कारण हमारे आस-पास व मन में अनायास ही नकारात्मकता का भाव उत्पन्न हो जाता है। इसी भाव को मिटाने के लिए श्रावण मास में सत्संग सुनने के लिए कहा जाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-sawan-know-interesting-things-about-lord-shiva-news-hindi-5389294-PHO.html

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