भगवान शिव को पति रूप में
पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। देवी पार्वती की कठोर तपस्या के
बाद भगवान शिव ने उनके विवाह का प्रस्ताव को स्वीकार कर दिया। मान्यातओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह उत्तराखंड के
रुद्रप्रयाग जिले में हुआ था।
रुद्रप्रयाग जिले का एक
गांव है त्रिर्युगी नारायण। कहते हैं इसी गांव में भगवान शिव का देवी पार्वती के
साथ विवाह हुआ था। इस गांव में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का एक मंदिर है, जिसे शिव पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना
जाता है। इस मंदिर के परिसर में ऐसे कई चीजें आज भी मौजूद हैं, जिनका संबंध शिव-पार्वती के विवाह से माना जाता
हैं।
यह है वह स्थान जहां पर भगवान शिव और पार्वती विवाह के समय बैठे थे। इसी स्थान
पर ब्रह्मा जी ने भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह करवाया था।
यह है त्रिर्युगी नारायण मंदिर की अखंड धुनी। भगवान शिव ने इसी कुंड के
चारों तरफ देवी पार्वती के संग फेरे लिए थे। आज भी इस कुंड में अग्नि को जीवित
रखा गया है। मंदिर में प्रसाद रूप में लकड़ियां भी चढ़ाई जाती है। श्रद्धालु इस
पवित्र अग्नि कुंड की राख अपने घर ले जाते हैं। कहते हैं यह राख वैवाहिक जीवन
में आने वाली सभी परेशानियों को दूर करती है।
यह है ब्रह्मकुंड। शिव पार्वती के विवाह में ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे। विवाह
में शामिल होने पहले ब्रह्मा जी ने जिस कुंड में स्नान किया था वह ब्रह्मकुंड
कहलाता है। तीर्थयात्री इस कुंड में स्नान करके ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त
करते हैं।
यह है विष्णु कुंड। शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने देवी
पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। भगवान विष्णु ने उन सभी रीतियों को निभाया
जो एक भाई अपनी बहन के विवाह में करता है। कहते हैं इसी कुंड में स्नान करके
भगवान विष्णु ने विवाह संस्कार में भाग लिया था।
भगवान शिव को विवाह में एक गाय मिली थी। माना जाता है कि यह वह स्तंभ है, जिस पर उस गाय को बांधा गया था।
यह है रुद्र कुंड। भगवान शिव के विवाह में भाग लेने आए सभी देवी-देवताओं ने
इसी कुंड में स्नान किया था। इन सभी कुंडों में जल का स्त्रोत सरस्वती कुंड को
माना जाता है।
No comments:
Post a Comment