Thursday, August 4, 2016

पशुपतिनाथ को सिर और केदारनाथ को माना जाता है शिव की पीठ, जानें


सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय माना जाता है। इसमें शिव के दर्शन और पूजा करने का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके चलते हम आपको शिव के खास मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं।

नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर भगवान शिव के सबसे खास मंदिरों में से एक है। यह मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर है। इस मंदिर से कई अनोखी बातें और रहस्य जुड़े हुए हैं, जो इसके महत्व को कई गुना बढ़ा देते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कैसे हुई थी पशुपतिनाथ की स्थापना और इस मंदिर से जुड़े ऐसे ही 6 रहस्य। पशुपतिनाथ को लेकर मान्यता है कि यह शिवलिंग उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी के तट पर बसे केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का ही आधा हिस्सा है।
पशुपतिनाथ को सिर और केदारनाथ को माना जाता है शिव की पीठ
पशुपतिनाथ के विषय में कथा है कि महाभारत युद्घ में पाण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान भोलेनाथ पाण्डवों से नाराज हो गये। भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर पाण्डव भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए चल पड़े। गुप्त काशी में पाण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थिति है।

भगवान शिव का पीछा करते हुए पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पाण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। पाण्डवों ने भैसों के झुण्ड में भी भगवान शिव को पहचान लिया तब भगवान शिव भैंस के रूप में ही भूमि समाने लगे। भगवान शिव को धरती में समाते देख भीम ने भैंस रूपी शिव को कसकर पकड़ लिया।

यह देख भगवान शिव प्रकट हुए और पाण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। इस बीच भैंस बने भगवान शिव का सिर काठमांडू स्थित पशुपति नाथ में पहुंच गया। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है।
पशुपतिनाथ से पहले शिव के दर्शन करने पर होता है पशु योनि में जन्म
पशुपतिनाथ के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति पशुपति नाथ के दर्शन करता है उसका जन्म कभी भी पशु योनि में नहीं होता है, लेकिन यहां यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय भक्तों को मंदिर के बाहर स्थित नंदी का प्रथम दर्शन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति पहले नंदी का दर्शन करता है बाद में शिवलिंग का दर्शन करता है उसे अगले जन्म पशु योनि मिलती है।
क्या हैं पशुपतिनाथ के चार मुखों का मतलब
पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। दक्षिण दिशा वाला मुख अघोर मुख है, जो दक्षिण की ओर है, पूर्व मुख को तत्पुरुष कहते हैं, उत्तर मुख अर्धनारीश्वर रूप है और पश्चिमी मुख को सद्योजात कहा जाता है। ऊपरी भाग में स्थित पांचवें मुख को ईशान मुख के नाम से पुकारा जाता है।
शिवलिंग में है पारस पत्थर का गुण
पशुपतिनाथ ज्योर्लिंग चतुर्मुखी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में जनश्रुति है इसमें पारस पत्थर के गुण हैं, जो लोहे को सोना बना सकता है। नेपालवासियों और नेपाल के राजपरिवार के लिए पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग आराध्य देव हैं।
सिर्फ आर्य घाट का पानी जाता है मंदिर में
पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर ही एक घाट है, जिसे आर्य घाट कहा जाता है। इस घाट को बहुत पवित्र माना जाता है, जिसके कारण सिर्फ इस घाट का पानी ही मंदिर में ले जाया जाता है। अन्य किसी पानी को मंदिर में लेकर जाने की अनुमति नही है।
मंदिर का धर्मिक और सांस्कृतिक महत्व
यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। साथ ही, इसे इस मंदिर को यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया है, जो इसके सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-TID-facts-related-to-pashupati-nath-nepal-in-hindi-news-hindi-5380737-PHO.html?seq=1

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