Wednesday, August 31, 2016

चींटियों को आटा देने से मिलती हैं लक्ष्मी कृपा

घर में धन-संपत्ति बनाए रखने के लिए घर पर देवी लक्ष्मी की कृपा होना बहुत जरूरी होता हैं। यदि घर में कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो धन-लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। जानिए घर-परिवार पर देवी लक्ष्मी की कृपा बनाए रखने और धन लाभ पाने के कुछ अचूक उपाय-

1. घर की धन संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए आटे में शक्कर मिला कर काली चींटियों को खिलाएं।

2. खाने के लिए बनाई जा रही पहली रोटी या चावल का कुछ भाग गाय को खिलाए, ऐसा करने से घर में दरिद्रता नहीं रहती।

3. आटे के लिए गेहूं शनिवार को पिसवाने का नियम बनाएं, हो सके तो गेहूं में थोड़े से काले चने भी मिला दें। इसके अलावा शनिवार के दिन खाने में किसी न किसी तरीके से काले चने का प्रयोग करें।

4. सुबह घर के किसी भी सदस्य के नाश्ता करने से पहले घर की झाड़ू जरूर लगा लें।

5. घर में शाम के समय झाड़ू-पोंछा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी रूठ जाती है।

6. घर पर स्थापित भगवान की मूर्तियों या तस्वीरों पर रोज सुबह स्नान करके कुंकुम, चंदन और फूल चढ़ाएं।

7. लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए हर गुरुवार को किसी एक सुहागन स्त्री को सुहाग की साम्रगी दान देने का नियम बनाएं।

8. सफेद रंग की सामान जैसे दूध, खीर, सफेद फूल, चावल आदि का दान करने से धन प्राप्ति के योग बनते हैं।

9. धन के लेन-देन संबंधी कोई भी काम करने के लिए सोमवार और बुधवार का चुनें। इस दिन किया गया धन का लेन-देन फायदेमंद माना जाता है।

10. घर की दीवारों यो फर्श पर पैंसिल या चाक आदि के निशान न बनाने दें, इससे कर्ज बढ़ने की संभावना रहती है।

11. चेकबुक, पासबुक या पैसे के लेन-देन से जुड़े कागजों को श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र आदि के पास रखें।

12. घर की तिजोरी में लक्ष्मी यंत्र या कुबेर यंत्र जरूर रखें। ऐसा करने से तिजोरी में धन हमेशा बना रहता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JYO-VAS-12-easy-vastu-tips-in-hindi-news-hindi-5405817-PHO.html

Saturday, August 13, 2016

शिव के इस अवतार ने किया था शनिदेव पर वार, फिर क्या हुआ?

पवित्र श्रावण मास चल रहा है। इस महीने में भगवान शिव के पूजन करने का विशेष महत्व है। हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान शिव की अनेक अवतारों के बारे में भी बताया गया है, लेकिन बहुत कम लोग शिव के इन अवतारों के बारे में जानते हैं। आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे अवतार के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने शनिदेव पर भी प्रहार कर दिया था, जिसके कारण शनिदेव की गति मंद यानी धीरे हो गई।
 
दधीचि मुनि के पुत्र थे पिप्पलाद
पुराणों के अनुसार, भगवान शंकर ने अपने परम भक्त दधीचि मुनि के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया। भगवान ब्रह्मा ने इनका नाम पिप्पलाद रखा, लेकिन जन्म से पहले ही इनके पिता दधीचि मुनि की मृत्यु हो गई। युवा होने पर जब पिप्पलाद ने देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का कारण पूछा तो उन्होंने शनिदेव की कुदृष्टि को इसका कारण बताया।
 
पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने शनिदेव के ऊपर अपने ब्रह्म दंड का प्रहार किया। शनिदेव ब्रह्म दंड का प्रहार नहीं सह सकते थे इसलिए वे उससे डर कर भागने लगे। तीनों लोगों की परिक्रमा करने के बाद भी ब्रह्म दंड ने शनिदेव का पीछा नहीं छोड़ा और उनके पैर पर आकर लगा।

शिव भक्तों को कष्ट नहीं देते शनिदेव

मुनि पिप्पलाद द्वारा फेंके गए ब्रह्म दंड के पैर पर लगने से शनिदेव लंगड़े हो गए। तब देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा करने के लिए कहा। देवताओं ने कहा कि शनिदेव तो न्यायाधीश हैं और वे तो अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। आपके पिता की मृत्यु का कारण शनिदेव नहीं है। देवताओं के आग्रह पर पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा को कर दिया।
देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक के शिवभक्तों को कष्ट नहीं देंगे, यदि ऐसा हुआ तो शनिदेव भस्म हो जाएंगे। तभी से पिप्पलाद मुनि का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।

इसलिए नाम पड़ा पिप्पलाद

भगवान पिप्पलाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ। पीपल के नीचे ही तप किया और पीपल के पत्तों को ही भोजन के रूप में ग्रहण किया था इसलिए शिव के इस इस अवतार का नाम पिप्पलाद पड़ा। कहते हैं स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था। शिवपुराण में इसका उल्लेख मिलता है-

पिप्पलादेति तन्नाम चक्रे ब्रह्मा प्रसन्नधी:।
शिवपुराण शतरुद्रसंहिता 24/61

अर्थात ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-piplad-is-a-avtar-of-lord-shiva-news-hindi-5393829-PHO.html

Friday, August 12, 2016

कैसा भोजन करने के बाद नहीं सुननी चाहिए शिवपुराण की कथा?


धर्म ग्रंथों में भगवान शंकर को अनादि व अजन्मा बताया गया है। भगवान शंकर से संबंधित अनेक धर्मग्रंथ प्रचलित हैं, लेकिन शिवपुराण उन सभी में सबसे अधिक प्रामाणिक माना गया है। शिवपुराण की कथा करने व सुनने वालों के लिए अनेक नियम बनाए गए हैं, जिनका वर्णन शिवपुराण में ही मिलता है। गरिष्ठ अन्न, दाल, जला अन्न, सेम, मसूर, भाव दूषित तथा बासी अन्न खाकर शिवपुराण नहीं सुननी चाहिए, ये नियम भी शिवपुराण में बताया गया है। श्रावण महीने के पवित्र महीने में हम आपको बता रहे हैं शिवपुराण से जुड़ी कुछ खास बातें-

7 भाग हैं शिवपुराण के

शिवपुराण में चौबीस हजार श्लोक हैं। इसमें सात संहिताएं हैं जो क्रमश: इस प्रकार हैं-

1. विद्येश्वर संहिता,

2. रुद्र संहिता,

3.शतरुद्र संहिता,

4. कोटिरुद्र संहिता,

5.उमा संहिता,

6.कैलाश संहिता,

7. वायवीय संहिता। इनमें से रुद्र संहिता के पांच खंड हैं तथा वायवीय संहिता के दो खंड।

शिवपुराण की कथा करवाने व सुनने संबंधी नियम इस प्रकार हैं-


1. सबसे पहले किसी योग्य ज्योतिष को बुलाकर कथा प्रारंभ के लिए मुहूर्त निर्धारित करें तथा कथा वाचन के लिए विद्वान पंडित का चयन करें। इसके बाद अपने रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों को कथा के संबंध में सूचित करें ताकि वे भी धर्म लाभ ले सकें।


2.
कथा करवाने के लिए उत्तम स्थान चुनें, वहां केले के खम्भों से एक ऊंचा कथा मंडप तैयार करवाएं। उसे सब ओर से फल-पुष्प आदि से सजाएं। भगवान शंकर के लिए दिव्य आसन का निर्माण करवाएं तथा एक ऐसा ही दिव्य आसन कथावाचक (कथा सुनाने वाला) के लिए भी बनवाएं।


3.
श्रोताओं (कथा सुनने वाले) के बैठने के लिए भी उचित प्रबंध होना चाहिए। सूर्योदय से आरंभ करके साढ़े तीन पहर तक कथावाचक को शिवपुराण कथा बोलनी चाहिए। मध्याह्नकाल में दो घड़ी तक कथा बंद रखनी चाहिए, ताकि श्रोता आवश्यक कार्य कर सकें।

4.
कथा में आनी वाली परेशानियों को समाप्त करने के लिए भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद भगवान शंकर व शिवपुराण का पूजन भी अवश्य करें। इस प्रकार मन शुद्ध कर शिवपुराण कथा का प्रारंभ करना चाहिए।

5. जो संत, महात्मा अथवा योग्य ब्राह्मण शिवपुराण की कथा करता है, उसे कथा प्रारंभ के दिन से एक दिन पहले ही व्रत ग्रहण करने के लिए क्षौर कर्म (बाल कटवाना या नाखून काटना) कर लेना चाहिए। कथा शुरू होने से लेकर समापन तक क्षौर कर्म नहीं करना चाहिए।

6.
जो लोग दीक्षा से रहित हैं, उन्हें कथा सुनने का अधिकार नहीं है। कथा सुनने की इच्छा रखने वाले को पहले वक्ता (कथा कहने वाले) से दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए।


7.
जो लोग नियमपूर्वक कथा सुनें, उनको ब्रह्मचर्य से रहना, भूमि पर सोना, पत्तल में खाना और प्रतिदिन कथा समाप्त होने पर ही भोजन करना चाहिए। शक्ति व श्रद्धा हो तो पुराण की समाप्ति तक उपवास करके शुद्धता पूर्वक भक्तिभाव से शिवपुराण की कथा सुनें।

8. शिवपुराण कथा का व्रत लेने वाले पुरूष को प्रतिदिन एक ही बार हविष्यान्न (यज्ञ में अर्पित अन्न) भोजन करना चाहिए। जिस प्रकार से कथा श्रवण का नियम सुखपूर्वक सध सके, वैसे ही करना चाहिए।


9.
जल्दी न पचने वाला भोजन, दाल, जला अन्न, सेम, मसूर, भावदूषित तथा बासी अन्न को खाकर कभी शिवपुराण की कथा नहीं सुननी चाहिए। जिसने कथा का व्रत ले रखा हो, उसे प्याज, लहसुन, हींग, गाजर, मादक वस्तु आदि का त्याग कर देना चाहिए।


10.
कथा का व्रत लेने वाले को काम, क्रोध आदि 6 विकारों को, ब्राह्मणों की निंदा को तथा पतिव्रता और साधु-संतों की निंदा को भी त्याग देना चाहिए।


11. दरिद्र, क्षय का रोगी, पापी, भाग्यहीन तथा संतान रहित पुरूष को भी यह कथा सुननी चाहिए। बांझ आदि जो 7 प्रकार की दुष्ट स्त्रियां धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं तथा जिस स्त्री का गर्भ गिर जाता हो, उसे भी शिवपुराण की कथा अवश्य सुननी चाहिए।

12. शिवपुराण की कथा का समापन होने पर उत्सव मनाना चाहिए। इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ पुराण की भी पूजा करना चाहिए। साथ ही कथा कहने वाले महापुरुष की भी पूजा कर उन्हें दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए। कथा सुनने आए ब्राह्मणों का यथोचित सत्कार कर उन्हें भी दान-दक्षिणा देना चाहिए।


13.
कथा सुनने संबंधी व्रत की पूर्णता की सिद्धि के लिए 11 ब्राह्मणों को मधु (शहद) मिश्रित खीर का भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें। यदि शक्ति हो तो 3 तोले सोने का एक सिंहासन बनवाएं और उस पर विधिपूर्वक शिवपुराण की पोथी स्थापित करें। इसकी पूजा कर योग्य आचार्य को वस्त्र, आभूषण सहित वह पोथी उन्हें समर्पित कर दें।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-13-rules-of-shivpuran-news-hindi-5392950-PHO.html

Thursday, August 11, 2016

यहां हुई थी शिव-पार्वती की शादी, आज भी मौजूद हैं निशानियां

भगवान श‌िव को पत‌ि रूप में पाने के ल‌िए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। देवी पार्वती की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने उनके विवाह का प्रस्ताव को स्वीकार कर दिया। मान्यातओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हुआ था।
रुद्रप्रयाग ज‌िले का एक गांव है त्र‌िर्युगी नारायण। कहते हैं इसी गांव में भगवान श‌िव का देवी पार्वती के साथ व‌िवाह हुआ था। इस गांव में भगवान व‌िष्‍णु और देवी लक्ष्मी का एक मंद‌िर है, ज‌िसे श‌िव पार्वती के व‌िवाह स्‍थल के रूप में जाना जाता है। इस मंद‌िर के परिसर में ऐसे कई चीजें आज भी मौजूद हैं, ज‌‌िनका संबंध श‌िव-पार्वती के व‌िवाह से माना जाता हैं।
यह है वह स्‍थान जहां पर भगवान श‌िव और पार्वती व‌िवाह के समय बैठे थे। इसी स्‍थान पर ब्रह्मा जी ने भगवान श‌िव और देवी पार्वती का व‌िवाह करवाया था।

यह है त्र‌िर्युगी नारायण मंद‌िर की अखंड धुन‌ी। भगवान श‌िव ने इसी कुंड के चारों तरफ देवी पार्वती के संग फेरे ल‌िए थे। आज भी इस कुंड में अग्न‌ि को जीव‌ित रखा गया है। मंद‌िर में प्रसाद रूप में लकड़‌ियां भी चढ़ाई जाती है। श्रद्धालु इस प‌व‌ित्र अग्न‌ि कुंड की राख अपने घर ले जाते हैं। कहते हैं यह राख वैवाह‌िक जीवन में आने वाली सभी परेशान‌ियों को दूर करती है।
यह है ब्रह्मकुंड। श‌िव पार्वती के व‌िवाह में ब्रह्मा जी पुरोह‌ित बने थे। व‌िवाह में शाम‌िल होने पहले ब्रह्मा जी ने ज‌िस कुंड में स्‍नान क‌िया था वह ब्रह्मकुंड कहलाता है। तीर्थयात्री इस कुंड में स्नान करके ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

यह है व‌िष्‍णु कुंड। श‌‌िव-पार्वती के व‌िवाह में भगवान व‌िष्‍णु ने देवी पार्वती के भाई की भूम‌िका न‌िभाई थी। भगवान व‌िष्‍णु ने उन सभी रीत‌ियों को न‌िभाया जो एक भाई अपनी बहन के व‌िवाह में करता है। कहते हैं इसी कुंड में स्नान करके भगवान व‌िष्‍णु ने व‌िवाह संस्कार में भाग ल‌िया था।



भगवान श‌िव को व‌िवाह में एक गाय म‌िली थी। माना जाता है कि यह वह स्तंभ है, जिस पर उस गाय को बांधा गया था।

यह है रुद्र कुंड। भगवान श‌िव के व‌िवाह में भाग लेने आए सभी देवी-देवताओं ने इसी कुंड में स्‍नान क‌िया था। इन सभी कुंडों में जल का स्त्रोत सरस्वती कुंड को माना जाता है।