Tuesday, June 28, 2016

सुसंस्कारों का महत्त्व !

१. सुसंस्कारित मन जीवको भटकने नहीं देता !
सुसंस्कारित मन जीवको कहीं भी भटकने नहीं देता । इसीलिए बच्चों का मन सुसंस्कारित करना, यह बडों का, हिंदु धर्माचरण करने वालों का, समाज का कर्तव्य है । ईश्‍वर द्वारा प्राप्त यह समष्टि सेवा है; परंतु समाज के यह ध्यान में नहीं आता और वह भटके हुए युवकों की भांति दूरदर्शन तथा दूरदर्शन की धारावाहिकों में बह गया है ।
२. कुसंस्कार होने का महत्त्वपूर्ण कारण है, सर्वत्र फैला भोगवाद
हमारे बचपनमें हमें यह सब नहीं मिला । हमारा पूरा बचपन हमने बडों के नियंत्रण में रहकर मिटा दिया । अब मिल रहा है, तो लालची मनुष्य की भांति खाएंगे । मनानुसार ही करेंगे’, ऐसे विचार लोगों के मन में प्रबलता से होते हैं । ऐसा कुसंस्कारित मन आगे की पिढी पर कौन से संस्कार कर पाएगा ? इसीलिए आगे की, अर्थात वर्तमान पिढी पूर्णतः भटक गई है । ऐसे में प्रसारमाध्यम, सडकों पर भी सहजता से दिखाई देनेवाले अयोग्य विज्ञापन, भ्रमणभाष, ई-मेल, फेसबूक ऐसे अनंत आधुनिक उपकरण सहजता से उपलब्ध होने से इसमें वृद्धि ही हुई है । इससे जो योग्य है, वह सिखने की अपेक्षा जो आवश्यक नहीं है, ऐसे मार्ग पर नई पिढी बहती जा रही है । प्रत्येक सुसंस्कार हमें ईश्‍वरकी ओर ले जाता है; परंतु कुसंस्कार असुरों के राज्यमें ही ले जाता है और अराजकता भी निर्माण करता है । यही आज हमें सर्वत्र दिखाई दे रहा है ।
३. समाज को आज सुराज्य की आवश्यकता है !
समाज को आज चाहिए एक सुराज्य । इसमें होगा धर्माचरण । राष्ट्र, धर्म, ईश्‍वर का सम्मान करने वाला आदरणीय समाज । वही इस युवा पिढी को सन्मार्ग दिखाएगा । इसीलिए सनातन संस्था और कुछ हिंदुत्ववादी संगठन सतत कार्यरत हैं । इसी के साथ चाहिए ईश्‍वरका अधिष्ठान । समर्थ रामदासजी ने कहा है, ‘‘सामर्थ्य है आंदोलन का । जो जो करेगा उसी का । परंतु वहां ईश्‍वर का । अधिष्ठान होना चाहिए ॥ यही सात्त्विक कार्य सनातन संस्था के संस्थापक परात्परगुरु प.पू. डॉ. जयंत बाळाजी आठवले कर रहे हैं । इसमें अनेक संत और साधक हाथ बंटा रहे हैं ।
४. आगे की पिढी सुसंस्कारित करनेके लिए प्रयत्न करना, यही खरी सत्सेवा !
नागरिको, आदर्श राज्य आनेवाला ही है; परंतु इसके लिए आगे की पिढी सुसंस्कारित होनी चाहिए । इसलिए प्रत्येक को प्रयत्न करना आवश्यक है । जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने कानी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया ही था; परंतु उसमें स्थूल से प्रत्येक गोप-गोपी लाठी लगाकर सहभागी हुए थे, वैसी ही स्थिति आज भी है । हमें भी वही कार्य कर केवल हाथ लगाने के लिए सज्ज होना है । आइए चलें, आगे की पिढी सुसंस्कारित करने के लिए सिद्ध हो जाएंगे ! वही हमारी सत्सेवा है । यह ध्यानमें रखेंगे ।
श्रीमती रजनी नगरकर, रामनाथी, गोवा.
https://www.hindujagruti.org/hinduism-for-kids-hindi/7.html

Saturday, June 25, 2016

प्राकृतिक आपदाओं के कारण

क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रियायह प्राकृतिक अटल नियम

क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया’, यह प्राकृतिक अटल नियम है । नास्तिक तथा अधर्मी लोगों की पाशवी क्रूरता प्रकृति को प्रतिशोध लेने के लिए बाध्य करती है । इस नियम को, वैज्ञानिक पीटर टोम्पकिन्स एवं क्रिस्टोफर बर्डने भी अपने ग्रन्थ, ‘वृक्षों का गोपनीय जीवनमें उत्तम ढंग से विश्लेषित कर सिद्ध किया है ।
प्रकृति प्रतिशोध ले रही है !
प्रकृतिका गला दबाकर उसे अपना रहस्य बताने के लिए बाध्य करने वाले शास्त्रज्ञ, स्वार्थ के लिए मनमाना विध्वंस करने वाले धर्महीन आधुनिक राक्षस ही हैं । आज प्रकृति प्रतिशोध ले रही है । मानव, प्रकृतिका अविभाज्य अंग है । अतः, उसके लिए प्रकृति पर आक्रमण कर पाना असंभव है ।
क्रौर्य, आसुरी वृत्ति, पशुवधगृह, हत्याकाण्ड एवं युद्ध का भूकम्प से अति निकट का सम्बन्ध
क्रौर्य, आसुरी वृत्ति, पशुवधगृह, हत्याकाण्ड एवं युद्धों का भूकम्प से अति निकटका सम्बन्ध है । यह क्रूरता, ये पशुवधगृह बंद हों, तो भूकम्प नहीं होंगे ।ऐसा निष्कर्ष आइन्स्टाइन के सिद्धान्त, `पीडा तरंगका भी है । `इटिमोलोजी ऑफ अर्थक्वेक्सग्रंथका भी यही निष्कर्ष है । पुण्यशीला भारत भू को सहस्त्रों वर्ष तक भूकम्प अज्ञात था । अपवादस्वरूप ही कहीं भूकम्प हुआ होगा । किन्तु गत दस वर्ष में चार प्रलयकारी भूकम्प, चार चक्रवात एवं छह भीषण बाढ भारत भू ने देखा है ।
प.पू. गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (घनगर्जित)

Friday, June 24, 2016

भगवान शिव की केवल पीठ है केदारनाथ, बाकी 4 अंग कहां हैं स्थापित

उत्तराखंड का हिन्दू संस्कृति और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। यहां गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ जैसे कई सिद्ध तीर्थ स्थल हैं। सारी दुनिया में भगवान शिव के करोड़ों मंदिर हैं परन्तु उत्तराखंड स्थित पंच केदार सर्वोपरि हैं। भगवान शिव ने अपने महिषरूप अवतार में पांच अंग, पांच अलग-अलग स्थानों पर स्थापित किए थे। जिन्हें मुख्य केदारनाथ पीठ के अतिरिक्त चार और पीठों सहित पंच केदार कहा जाता है।
आइए अब जानते है भगवान शिव के पंच केदारों के बारे में-
1.केदारनाथ
यह मुख्य केदारपीठ है। इसे पंच केदार में से प्रथम कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होने पर अपने ही कुल के लोगों का वध करने के पापों का प्रायश्चित करने के लिए वेदव्यास जी की आज्ञा से पांडवों ने यहीं पर भगवान शिव की उपासना की थी। तब भगवान शिव ने उनकी तपस्या से खुश होकर महिष अर्थात बैल रूप में दर्शन दिये थे और उन्हें पापों से मुक्त किया था। तब से महिषरूपधारी भगवान शिव का पृष्ठभाग यहां शिलारूप में स्थित है।
2.मध्यमेश्वर
इन्हें मनमहेश्वर या मदनमहेश्वर भी कहा जाता हैं। इन्हें पंच केदार में दूसरा माना जाता है। यह ऊषीमठ से 18 मील दूरी पर है। यहां महिषरूपधारी भगवान शिव की नाभि लिंग रूप में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यही पर मनाई थी। यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती है।
3.तुंगनाथ-
इसे पंच केदार का तीसरा माना जाता हैं। केदारनाथ के बद्रीनाथ जाते समय रास्ते में यह क्षेत्र पड़ता है। यहां पर भगवान शिव की भुजा शिला रूप में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं पांडवों ने करवाया था। तुंगनाथ शिखर की चढ़ाई उत्तराखंड की यात्रा की सबसे ऊंची चढ़ाई मानी जाती है।
4.रुद्रनाथ-
यह पंच केदार में चौथे हैं। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव का मुख स्थित हैं। तुंगनाथ से रुद्रनाथ-शिखर दिखाई देता है पर यह एक गुफा में स्थित होने के कारण यहां पहुंचने का मार्ग बेदह दुर्गम है। यहां पंहुचने का एक रास्ता हेलंग (कुम्हारचट्टी) से भी होकर जाता है।
5.कल्पेश्वर-
यह पंच केदार का पांचवा क्षेत्र कहा जाता है। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। अलखनन्दा पुल से 6 मील पार जाने पर यह स्थान आता है। इस स्थान को उसगम के नाम से भी जाना जाता है। यहां के गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-TID-story-of-panch-kedar-in-uttarakhand-in-hindi-news-hindi-5355444-PHO.html

Thursday, June 23, 2016

सप्त ऋषि


सप्त ऋषि

आकाश में सात तारों का एक मंडल अस्तित्व मेहै ।उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है।उसमंडल के तारों के नाम भारत के सातमहान संतोंके आधार पर ही रखे गए हैं ।वेदोंमें उसमंडल की स्थिति, गति, दूरी एवं विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है । प्रत्येक मनवंतर में सात सात ऋषि हुए हैं ।
वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियोंकेऋषि-कुल के नामों का पता चलता है,वे नाम क्रमश: इस प्रकार है ।
" वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत ।
विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।"

१.वशिष्ठ
२.कश्यप
३.अत्रि
४.जमदग्नि
५.गौतम

६.विश्वामित्र
७.भारद्वाज
https://www.hindujagruti.org/hinduism-for-kids-hindi/37.html

Wednesday, June 22, 2016

रात में शीघ्र सोकर सवेरे शीघ्र उठें !


धर्मशास्त्र में कहा गया है कि प्रत्येक को प्रात: सूर्योदय के पूर्व उठना चाहिए; परंतु आजकल अनेक बच्चे रात को पढाई करते रहते हैं अथवा  दूरचित्रवाणी पर धारावाहिक अथवा चलचित्र देखते रहते हैं । इसलिए रात को देर से सोते हैं और प्रात: ८-९ बजे उठते हैं । जो आरोग्य के लिए हानिकारक है। कहा जाता है, ‘शीघ्र सोए, शीघ्र उठे तो आयु-स्वास्थ्य एवं धनसंपत्ति मिले ।' अर्थात्, जो शीघ्र सोकर शीघ्र उठता है, वह दीर्घायु एवं अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त कर धनवान बनता है ।
रातमें जागरण करनेसे होनेवाली हानि
जागरण करने से उष्णता के विकार होते हैं एवं आंखें भी प्रभावित होती हैं ।
प्रात: शीघ्र (समय पर) उठने के लाभ
अ. प्रात: वातावरण शुद्ध, पवित्र, शांत एवं उत्साहवर्धक होता है ।
आ. इस काल में पढाई अच्छी होती है ।
इ. भगवान की पूजा-अर्चना एवं उपासना करें !
https://www.hindujagruti.org/hinduism-for-kids-hindi/528.html

Tuesday, June 21, 2016

6 कारणों से होती है बीमारी : गरुड़ पुराण


गरुड़ पुराण में 6 ऐसे कारण बताए गए हैं, जिनकी वजह से हम बीमारियों की गिरफ्त में आ जाते हैं। अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए तो ज्यादा से ज्यादा समय स्वस्थ रह सकते हैं। जानें, गरुड़ पुराण में कहे गए बीमारियों के 6 कारण-

श्लोक-
अत्यम्बुपानं कठिनाशनं च, धातुक्षयो वेगविधापणं च।
दिवाशयो जागरणं च रात्रौ, षड्भिर्नराणा प्रभवन्ति रोगाः।।
1. जरूरत से ज्यादा पानी पीना
वैसे को पानी पीना शरीर के लिए अच्छा माना जाता है। पर्याप्त पानी पीने से पेट संबंधी कई बीमारियों से बचा जा सकता है, लेकिन जरूरत से ज्यादा पानी आपको फायदे की जगह नुकसान भी पहुंचा सकता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जो मनुष्य शरीर की आवश्यकता से ज्यादा पानी पीता है, उसे कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, अपने शरीर की जरूरत को समझें और उतना ही पानी पीएं, जितना आवश्यक हो।
2. दबाव बनने पर भी नित्यक्रियाएं रोकना
नित्यक्रियाएं बीमारियों को खुद से दूर रखने का एक आसान तरीका है। जो मनुष्य रोज अपने दिन की शुरुआत में ही नित्यकर्मों का पालन करता है, वह ज्यादा स्वस्थ रहता है। जो दबाव बनने पर भी नित्यक्रिया को रोकता है, उसके बीमारियों से घिरने की आशंका बनी रहती है। इसलिए, कभी भी ऐसा न करें।
3. दिन में सोना
दिन में सोना बीमारियों का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। दिन में सोने वाला आलसी प्रवृत्ति का माना जाता है। दिन में सोना लोग आराम पाने का एक जरिया मानते हैं, लेकिन यह आदत आपके आराम नहीं बल्कि कई बीमारियां देती है। इसलिए, ध्यान रखें कि ये आदत आपको ना लगे और अगर ये आदत आप में हैं तो फिर तुरंत छोड़ दें।
4. लगातार भारी भोजन करना
खाने में सभी विटामिन और प्रोटीन होना अनिर्वाय कहा गया है, लेकिन इसमें भी सावधानी रखना बहुत ही जरूरी है। लगातार भारी भोजन करना शरीर के लिए बहुत ज्यादा नुकसान दायक हो सकता है। स्वस्थ्य रहने के लिए सुबह नाश्ता करना चाहिए और फिर विटामिन और प्रोटीन से भरा लंच करना चाहिए। रात को भारी या मसालेदार खाने से बचें। ऐसा करने से आप ज्यादा से ज्यादा समय सेहतमंद रहेंगे।
5. रात में जागना
कई लोगों को रात में देर तक जागने की आदत होती है। जिस तरह दिन में सोना बीमारियों का घर है, उसी तरह रात में जागना भी बहुत घातक होता है। हर काम के लिए एक निश्चित समय होता है और उस काम को निश्चित समय पर ही करना चाहिए। रात में देर तक जागने से आप कई तरह की बीमारियों का शिकार हो सकते हैं।
6. धातु (इम्युनिटी पावर) खत्म हो जाना
शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत को इम्युनिटी पावर कहते हैं। जिस मनुष्य की इम्युनिटी पावर जितनी कमजोर होती है, वह उतना ही ज्यादा बीमार रहता है। किसी की भी इम्युनिटी पावर उसकी दिनचर्या और आदतों पर निर्भर करती है। जो मनुष्य नियमित समय पर उठता है, थोड़ा समय व्यायाम आदि करता है। सही समय पर खाना खाता और सोता है, उसकी इम्युनिटी पावर बहुत अच्छी होती है और वह कई बीमारियों से बचा रहता है। इसलिए, कोशिश करें की आप भी एक सही दिनचर्या का पालन करें और अपनी इम्युनिटी पावर को बनाए रखें।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-lesson-from-garud-puran-in-hindi-news-hindi-5352282-PHO.html