सनातन धर्म में यज्ञ की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। हिंदू
धर्म ग्रंथों में मनोकामना पूर्ति तथा अनिष्ट को टालने के लिए यज्ञ करने के कई
प्रसंग मिलते हैं। रामायण व महाभारत में ऐसे अनेक राजाओं का वर्णन मिलता है, जिन्होंने महान यज्ञ किए हैं।
देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भी यज्ञ किए जाने की परंपरा है। शास्त्रों के
अनुसार यज्ञ की रचना सर्वप्रथम परमपिता ब्रह्मा ने की। यज्ञ का संपूर्ण वर्णन
वेदों में मिलता है।
उन्नति
का मार्ग है यज्ञ
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यज्ञ का दूसरा नाम अग्नि पूजा है। यज्ञ से देवताओं को
प्रसन्न किया जा सकता है साथ ही मनचाहा फल भी प्राप्त किया जा सकता है।
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ब्रह्मा ने मनुष्य के साथ ही यज्ञ की भी रचना की और
मनुष्य से कहा इस यज्ञ के द्वारा ही तुम्हारी उन्नति होगी।
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यज्ञ तुम्हारी इच्छित कामनाओं, आवश्यकताओं को पूर्ण
करेगा। तुम यज्ञ के द्वारा देवताओं को पुष्ट करो, वे तुम्हारी उन्नति
करेंगे।
अग्नि
को माना जाता है ईश्वर का मुख
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धर्म ग्रंथों में अग्नि को ईश्वर का मुख माना गया है।
इसमें जो कुछ खिलाया (आहूति) जाता है, वास्तव में ब्रह्मभोज है।
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यज्ञ के मुख में आहूति डालना, परमात्मा को भोजन कराना
है। नि:संदेह यज्ञ में देवताओं की आवभगत होती है। धर्म ग्रंथों में यज्ञ की महिमा
खूब गाई गई है।
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वेद में भी यज्ञ का विषय प्रमुख है। यज्ञ से भगवान
प्रसन्न होते हैं।
गायत्री
को माता और यज्ञ को माना जाता है पिता
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कर्मों के प्रायश्चित स्वरूप, अनिष्ट और दुर्योगों की
शांति के लिए, किसी
अभाव की पूर्ति के लिए, कोई सुयोग या सौभाग्य प्राप्त करने के लिए, रोग को दूर करने के लिए, देवताओं को प्रसन्न करन
के लिए, धन-धान्य की अधिक उपज
आदि के लिए हवन किए जाते हैं।
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साधनाओं में भी हवन अनिवार्य है। जितने भी जप, पाठ किए जाते हैं, उनमें किसी न किसी रूप
में हवन अवश्य करना पड़ता है। गायत्री उपासना में भी हवन आवश्यक है।
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गायत्री को माता और यज्ञ को पिता कहा गया है। इन्हीं
के संयोग से मनुष्य का आध्यात्मिक जन्म होता है।
यज्ञ
से जुड़ा विज्ञान
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यज्ञ एक महत्वपूर्ण विज्ञान है। इसमें जिन वृक्षों
की समिधाएं उपयोग में लाई जाती हैं, उनमें विशेष प्रकार के गुण होते हैं।
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किस प्रयोग के लिए किस प्रकार की सामग्री डाली जाती
है, इसका भी विज्ञान है। उन
वस्तुओं के सम्मिश्रण से एक विशेष गुण तैयार होता है, जो जलने पर वायुमंडल में
विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है।
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वेद मंत्रों के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में और
अधिक वृद्धि होती है। जो व्यक्ति उस यज्ञ में शामिल होते हैं, उन पर तथा निकटवर्ती
वायुमंडल पर उसका बड़ा प्रभाव पड़ता है।
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वैज्ञानिक अभी तक कृत्रिम वर्षा कराने में सफल नहीं हुए
हैं, किंतु यज्ञ द्वारा वर्षा
के प्रयोग बहुधा सफल होते हैं। व्यापक सुख-समृद्धि, वर्षा, आरोग्य, शांति के लिए बड़े
यज्ञों की आवश्यकता पड़ती है।
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वहीं छोटे हवन भी अपनी सीमा और मर्यादा के भीतर हमें
लाभान्वित करते हैं।
हवन
और यज्ञ में क्या फर्क है?
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हवन, यज्ञ का छोटा रूप है। किसी भी पूजा अथवा जप आदि के
बाद अग्नि में दी जाने वाली आहुति की प्रक्रिया हवन के रूप में प्रचलित है। यज्ञ
किसी खास उद्देश्य से देवता विशेष को दी जाने वाली आहुति है।
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इसमें देवता, आहुति, वेद मंत्र, ऋत्विक, दक्षिणा अनिवार्य रूप से होते हैं। हवन हिंदू धर्म
में शुद्धिकरण का एक कर्मकांड है। कुंड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि
(भोजन) पहुंचाने की प्रक्रिया को हवन कहते हैं।
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हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ है, जिनकी अग्नि में आहुति
दी जाती हैं। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के बाद इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, लकड़ी आदि पदार्थों की
आहुति प्रमुख होती है।
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ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आस-पास किसी बुरी आत्मा
इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि
इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।
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