Thursday, July 5, 2018

आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से मन बढ़ता है आत्मविश्वास और शरीर में आती है स्फूर्ति,


ज्योतिष में सूर्य ग्रह को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य कमजोर हो तो इंसान में आत्मविश्वास की कमी होती है। शरीर थका रहता है। मन में संघर्ष करने की इच्छा शक्ति नहीं होती है।  ऐसी स्थिति में सूर्य की आराधना करने की सलाह दी जाती है। सूर्य आराधना के लिए  आदित्य हृदय स्तोत्र उपयुक्त माना गया है। इसके पाठ से सूर्य से जुड़े सारे दोष दूर होते हैं। शरीर में स्फूर्ति और आत्मविश्वास भरता है।

रामायण में भी मिलता है जिक्र
·         वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड (लंका कांड) में कहानी आती है कि भगवान राम राक्षसों से युद्ध कर रहे हैं।
·         कई राक्षसों को मारने के बाद अचानक रावण युद्ध करने के लिए सामने आ गया। भगवान राम थके हुए से थे, क्योंकि वो लंबे समय से युद्ध कर रहे थे।
·         रावण एकदम तरोताजा था। तब भगवान शिव के शिष्य अगस्त्य ऋषि वहां आए और भगवान राम से कहा कि वे तीन बार आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करके फिर युद्ध करें।
·         भगवान राम ने यही किया। इस स्तोत्र के प्रभाव से उनकी सारी थकान मिट गई। मन आत्म विश्वास से भर गया। उसी युद्ध में भगवान राम ने रावण को मारा था।
ऐसे करें आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ
·         सुबह सूर्योदय से पहले जागें।
·         स्नान के बाद भगवान सूर्य को तांबे के लोटे में जल भरकर अर्घ्य दें।
·         अगर संभव हो तो वहीं कुशा का आसन बिछाकर बैठें या घर के मंदिर में बैठें।
·         भगवान सूर्य का ध्यान करें। ऊँ आदित्याय नमः मंत्र का 11 बार जाप करें।
·         फिर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।

ब्रह्मा ने इंसान के साथ मिलकर की थी यज्ञ की रचना, अग्नि को माना गया है परमात्मा का मुंह, इसलिए दी जाती हैं इसमें आहुतियां

सनातन धर्म में यज्ञ की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। हिंदू धर्म ग्रंथों में मनोकामना पूर्ति तथा अनिष्ट को टालने के लिए यज्ञ करने के कई प्रसंग मिलते हैं। रामायण व महाभारत में ऐसे अनेक राजाओं का वर्णन मिलता हैजिन्होंने महान यज्ञ किए हैं। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भी यज्ञ किए जाने की परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार यज्ञ की रचना सर्वप्रथम परमपिता ब्रह्मा ने की। यज्ञ का संपूर्ण वर्णन वेदों में मिलता है।

उन्नति का मार्ग है यज्ञ
·         यज्ञ का दूसरा नाम अग्नि पूजा है। यज्ञ से देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है साथ ही मनचाहा फल भी प्राप्त किया जा सकता है।
·         ब्रह्मा ने मनुष्य के साथ ही यज्ञ की भी रचना की और मनुष्य से कहा इस यज्ञ के द्वारा ही तुम्हारी उन्नति होगी।
·         यज्ञ तुम्हारी इच्छित कामनाओं, आवश्यकताओं को पूर्ण करेगा। तुम यज्ञ के द्वारा देवताओं को पुष्ट करो, वे तुम्हारी उन्नति करेंगे।
अग्नि को माना जाता है ईश्वर का मुख
·         धर्म ग्रंथों में अग्नि को ईश्वर का मुख माना गया है। इसमें जो कुछ खिलाया (आहूति) जाता है, वास्तव में ब्रह्मभोज है।
·         यज्ञ के मुख में आहूति डालना, परमात्मा को भोजन कराना है। नि:संदेह यज्ञ में देवताओं की आवभगत होती है। धर्म ग्रंथों में यज्ञ की महिमा खूब गाई गई है।
·         वेद में भी यज्ञ का विषय प्रमुख है। यज्ञ से भगवान प्रसन्न होते हैं।
गायत्री को माता और यज्ञ को माना जाता है पिता
·         कर्मों के प्रायश्चित स्वरूप, अनिष्ट और दुर्योगों की शांति के लिए, किसी अभाव की पूर्ति के लिए, कोई सुयोग या सौभाग्य प्राप्त करने के लिए, रोग को दूर करने के लिए, देवताओं को प्रसन्न करन के लिए, धन-धान्य की अधिक उपज आदि के लिए हवन किए जाते हैं।
·         साधनाओं में भी हवन अनिवार्य है। जितने भी जप, पाठ किए जाते हैं, उनमें किसी न किसी रूप में हवन अवश्य करना पड़ता है। गायत्री उपासना में भी हवन आवश्यक है।
·         गायत्री को माता और यज्ञ को पिता कहा गया है। इन्हीं के संयोग से मनुष्य का आध्यात्मिक जन्म होता है।
यज्ञ से जुड़ा विज्ञान
·         ​यज्ञ एक महत्वपूर्ण विज्ञान है। इसमें जिन वृक्षों की समिधाएं उपयोग में लाई जाती हैं, उनमें विशेष प्रकार के गुण होते हैं।
·         किस प्रयोग के लिए किस प्रकार की सामग्री डाली जाती है, इसका भी विज्ञान है। उन वस्तुओं के सम्मिश्रण से एक विशेष गुण तैयार होता है, जो जलने पर वायुमंडल में विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है।
·         वेद मंत्रों के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में और अधिक वृद्धि होती है। जो व्यक्ति उस यज्ञ में शामिल होते हैं, उन पर तथा निकटवर्ती वायुमंडल पर उसका बड़ा प्रभाव पड़ता है।
·         वैज्ञानिक अभी तक कृत्रिम वर्षा कराने में सफल नहीं हुए हैं, किंतु यज्ञ द्वारा वर्षा के प्रयोग बहुधा सफल होते हैं। व्यापक सुख-समृद्धि, वर्षा, आरोग्य, शांति के लिए बड़े यज्ञों की आवश्यकता पड़ती है।
·         वहीं छोटे हवन भी अपनी सीमा और मर्यादा के भीतर हमें लाभान्वित करते हैं।
हवन और यज्ञ में क्या फर्क है?
·         हवन, यज्ञ का छोटा रूप है। किसी भी पूजा अथवा जप आदि के बाद अग्नि में दी जाने वाली आहुति की प्रक्रिया हवन के रूप में प्रचलित है। यज्ञ किसी खास उद्देश्य से देवता विशेष को दी जाने वाली आहुति है।
·         इसमें देवता, आहुति, वेद मंत्र, ऋत्विक, दक्षिणा अनिवार्य रूप से होते हैं। हवन हिंदू धर्म में शुद्धिकरण का एक कर्मकांड है। कुंड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि (भोजन) पहुंचाने की प्रक्रिया को हवन कहते हैं।
·         हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ है, जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती हैं। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के बाद इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, लकड़ी आदि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है।
·         ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आस-पास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।

Friday, January 19, 2018

खड़े होकर खाना इसलिए सही नहीं माना गया है, हो सकती हैं ये हेल्थ प्रॉब्लम्स

भारत परंपराओं का देश है कहा जाता है यहां हर डेली रुटिन से जुड़े कामों की कुछ रवायते हैं।भोजन से जुड़ी परंपराएं भी इन्हीं परंपराओं का अंग है। भोजन से ही शरीर को काम करने की एनर्जी मिलती है। यही कारण है कि जैसे हमारे देश में हर छोटे से छोटे या बड़े से बड़े काम से जुड़ी कुछ परंपराए बनाई गई हैं।

वैसे ही भोजन करने से जुड़ी हुई भी कुछ मान्यताएं हैं। ऐसी ही एक परंपरा है खड़े होकर या कुर्सी पर बैठकर भोजन ना करने की दरअसल, ऐसा माना जाता है कि खड़े होकर भोजन करने से कब्ज की समस्या होती है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि जब हम खड़े होकर भोजन करते हैं तो उस समय हमारी आंतें सिकुड़ जाती हैं और भोजन ठीक से नहीं पच पाता है। इसलिए जमीन पर सुखासन में बैठकर खाना खाने की परंपरा बनाई गई।

सुखासन पद्मासन का एक रूप है। सुखासन से स्वास्थ्य संबंधी वे सभी लाभ मिलते हैं जो पद्मासन से मिलते हैं। बैठकर खाना खाने से सिर्फ हम अच्छे से खाना खा सकते हैं, बल्कि इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है। जबकि इसके विपरित खड़े होकर भोजन करने से तो मन एकाग्र नहीं रहता है।इस तरह खाना खाने से मोटापा, अपच, कब्ज, एसिडीटी आदि पेट से जुड़ी समस्याएं होती हैं।