Wednesday, November 20, 2013
गौ माताकी उपयोगिता
गौ माताकी उपयोगिता
अमेरिका के कृषि विभागद्वारा प्रकाशित पुस्तक 'The cow is wonderful laboratory'(गोमाता एक आश्चर्यजनक रसायनशाला है) मे लिखा है कि गाय ही एक ऐसा जीव है, जिसकी आँत 180 फुट लम्बी होती है ,इसके कारण जो चारा ग्रहण करती है, उससे दूधमेँ कैरोटीन नामक उपयोगी पदार्थ बनता है, वह भैसके दूधसे दस गुना अधिक होता है।
2- भारतीय नस्लकी गायमेँ 33 करोड़ देवी देवताओँका वास माना गया है, जो अन्य किसी जीव मे नही है।
3-गायके दूधमेँ स्ट्रोनटियन नामक तत्तव है, जो अणु विकिरण प्रतिरोधक है।
4-गायके दूधमेँ 'सेरीब्रोसाइड' तत्तव होता है, जो मस्तिष्क एवं बुद्दिके विकाशमेँ सहायक है और अम्लपित्त एवं शरीरकी गर्मीको शान्त करनेका काम करता है।
5-गायको शतावरी खिलाकर प्राप्त दूधका उपयोग करने पर टी॰ बी॰ से मुक्ति मिल सकती है
6-गाय के दूधमेँ उसी गायका घी मिलाकर पीनेसे कैँसर ठीक हो सकता है।
7- गायकी रीढ़मेँ सूर्यकेतु नामक नाड़ी होती है जो सूर्यके प्रकाशमेँ जाग्रत् होती है, इससे यह स्वर्णके रंगका पदार्थ छोड़ती है जिससे गायके दूधका रंग हल्का पीला होता है।गायके दूधमेँ स्वर्ण तत्तव पाया जाता है, जो माँके दूधके अलावा अन्य किसीमे नही पाया जाता ।
अता गोभक्तोँ निवेदन है कि वे प्रतिदिन गोग्रासके लिये कुछ धनराशि गुल्लक मेँ अवश्य डालेँ तथा एकत्रित धनको गोशालाको प्रदानकर पुण्यके भागी बनेँ।
'जय श्रीकृष्ण'
2- भारतीय नस्लकी गायमेँ 33 करोड़ देवी देवताओँका वास माना गया है, जो अन्य किसी जीव मे नही है।
3-गायके दूधमेँ स्ट्रोनटियन नामक तत्तव है, जो अणु विकिरण प्रतिरोधक है।
4-गायके दूधमेँ 'सेरीब्रोसाइड' तत्तव होता है, जो मस्तिष्क एवं बुद्दिके विकाशमेँ सहायक है और अम्लपित्त एवं शरीरकी गर्मीको शान्त करनेका काम करता है।
5-गायको शतावरी खिलाकर प्राप्त दूधका उपयोग करने पर टी॰ बी॰ से मुक्ति मिल सकती है
6-गाय के दूधमेँ उसी गायका घी मिलाकर पीनेसे कैँसर ठीक हो सकता है।
7- गायकी रीढ़मेँ सूर्यकेतु नामक नाड़ी होती है जो सूर्यके प्रकाशमेँ जाग्रत् होती है, इससे यह स्वर्णके रंगका पदार्थ छोड़ती है जिससे गायके दूधका रंग हल्का पीला होता है।गायके दूधमेँ स्वर्ण तत्तव पाया जाता है, जो माँके दूधके अलावा अन्य किसीमे नही पाया जाता ।
अता गोभक्तोँ निवेदन है कि वे प्रतिदिन गोग्रासके लिये कुछ धनराशि गुल्लक मेँ अवश्य डालेँ तथा एकत्रित धनको गोशालाको प्रदानकर पुण्यके भागी बनेँ।
'जय श्रीकृष्ण'
Friday, November 15, 2013
देसी गाय के दूध का महत्व
देसी गाय के दूध का महत्व
आधुनिक विज्ञानका यह मानना है कि सृष्टिके आदि कालमें, भूमध्य रेखा के दोनो ओर प्रथम एक गर्म भूखंड उत्पन्न हुआ था इसे भारतीय परम्परामे जम्बुद्वीपका नाम दिया जाता है | सभी स्तनधारी भूमि पर पैरों से चलनेवाले प्राणी दोपाए, चौपाए जिन्हें वैज्ञानिक भाषामें अनग्युलेट मेमलके (ungulate mammal) नामसे जाना जाता है, वे इसी जम्बू द्वीपपर उत्पन्न हुये थे | इस प्रकार सृष्टिमें सबसे प्रथम मनुष्य और गौका इसी जम्बुद्वीप भूखंडपर उत्पन्न होना माना जाता है | इस प्रकार यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय गाय ही विश्वकी मूल गाय है इसी मूल भारतीय गायका लगभग ८००० वर्ष पूर्व, भारत जैसे गर्म क्षेत्रोंसे यूरोपके ठंडे क्षेत्रोंके लिए पलायन हुआ, ऐसा माना जाता है | जीव विज्ञानके अनुसार भारतीय गायोंके २०९ तत्व के डीएनए में ६७ पद पर स्थित एमिनो एसिड प्रोलीन (Proline) पाया जाता है इन गौओंके ठंडे यूरोपीय देशोंको पलायनमें भारतीय गायके डीएनएमें प्रोलीन Proline एमीनोएसिड हिस्टीडीनके (Histidine) साथ उत्परिवर्तित हो गया | इस प्रक्रियाको वैज्ञानिक भाषामें म्युटेशन ( Mutation ) कहते हैं | 1. मूल गायके दूधमें पोरलीन(Proline) अपने स्थान ६७ पर अत्यधिक दृढतासे आग्रहपूर्वक अपने पडोसी स्थान ६६ पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्यूसीनसे (Isoleucine) जुडा रहता है; परन्तु जब प्रोलीनके स्थानपर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीनमें अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीनसे जुडे रहनेकी प्रबल इच्छा नही पाई जाती | इस स्थितिमें यह एमिनो एसिड Histidine, मानव शरीरकी पाचन क्रियामें सरलतासे टूट कर पसर जाता है | इस प्रक्रियासे एक 7 एमीनोएसिडका छोटा प्रोटीन स्वच्छ्न्द रूपसे मानव शरीरमें अपना भिन्न अस्तित्व बना लेता है | इस 7 एमीनोएसिडके प्रोटीनको बीसीएम 7 BCM7 (बीटा Caso Morphine7) नाम दिया जाता है | 2. BCM7 एक Opioid (narcotic) अफीम परिवारका मादक तत्व है जो अत्यधिक शक्तिशाली Oxidant ऑक्सीकरण तत्त्वके रूपमें मानव स्वास्थ्यपर अपनी श्रेणीके दूसरे अफीम जैसे ही मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोडता है | जिस दूधमें यह विषैला मादक तत्व बीसीएम 7 पाया जाता है, उस दूधको वैज्ञानिकोंने ए1 दूधका नाम दिया है | यह दूध उन विदेशी गौओंमें पाया गया है जिनके डीएनएमें ६७ स्थानपर प्रोलीन न हो कर हिस्टिडीन होता है | आरम्भमें जब दूधको बीसीएम7 के कारण बडे स्तरपर जानलेवा रोगोंका कारण पाया गया तब न्यूज़ीलेंडके सारे डेरी उद्योगके दूधका परीक्षण आरम्भ हुआ | सारे डेरी दूधपर किए जानेवाले प्रथम अनुसंधानमे जो दूध मिला वह बीसीएम7 से दूषित पाया गया | इसलिए यह सारा दूध ए1 कहलाया | तदोपरांत ऐसे दूधकी आविष्कार आरम्भ हुई जिसमें यह बीसीएम7 विषैला तत्व न हो | इस दूसरे अनुसंधान अभियानमें जो बीसीएम7 रहित दूध पाया गया उसे ए2 नाम दिया गया | सुखद बात यह है कि विश्वकी मूल गायकी प्रजातिके दूधमें, यह विष तत्व बीसीएम7 नहीं मिला, इसलिए देसी गायका दूध ए2 प्रकारका दूध संबोधित किया जाता है | देसी गायके दूधमें यह स्वास्थ्य नाशक मादक विष तत्व बीसीएम7 नही होता | आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानसे अमेरिकामें यह भी पाया गया कि ठीकसे पोषित देसी गायके दूध और दूधके बने पदार्थ मानव शरीरमें कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते | भारतीय परम्परामें इसलिए देसी गायके दूधको अमृत कहा जाता है | आज यदि भारतवर्षका डेरी उद्योग हमारी देसी गायके ए2 दूधकी उत्पादकताका महत्व समझ लें तो भारत सारे विश्व डेरी दूध व्यापारमें सबसे बडा दूध निर्यातक देश बन सकता है | देसी गायकी पहचान आज के वैज्ञानिक युग में, यह भी महत्त्वका विषय है कि देसी गायकी पहचान प्रामाणिक रूपसे हो सके | साधारण बोल चालमे जिन गौओं में कुकुभ, गल कम्बल छोटा होता है उन्हे य देसी नहीं माना जाता और सबको जर्सी कह दिया जाता है | प्रामाणिक रूपसे यह जाननेके लिए कि कौन सी गाय मूल देसी गायकी प्रजातिकी हैं, गौका डीएनए जांचा जाता है | इस परीक्षणके लिए गायकी पूंछके बालके एक टुकडेसे ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह गाय देसी गाय मानी जा सकती है या नहीं | यह अत्याधुनिक विज्ञानके अनुसन्धान का विषय है | पाठकोंकी जानकारीके लिए भारत सरकारसे इस अनुसंधानके लिए आर्थिक सहयोगके प्रोत्साहनसे भारतवर्षके वैज्ञानिक इस विषयपर अनुसंधान कर रहे हैं और निकट भविष्यमें वैज्ञानिक रूपसे देसी गायकी पहचान सम्भव हो सकेगी | इस महत्वपूर्ण अनुसंधानका कार्य दिल्ली स्थित महाऋषि दयानंद गोसम्वर्द्धन केंद्रकी पहल और भागीदारीपर और कुछ भारतीय वैज्ञानिकोंके निजी उत्साहसे आरम्भ हो सका है | ए1 दूधका मानव स्वास्थ्यपर दुष्प्रभाव जन्मके समय बालकके शरीरमें blood brain barrier नही होता | माताके स्तन पान करानेके बाद तीन चार वर्षकी आयु तक शरीरमें यह ब्लडब्रेन बैरियर स्थापित हो जाता है | इसलिए जन्मोपरांत माताके पोषन और स्तनपान द्वारा शिषुको मिलनेवाले पोषणका, बचपनमें ही नही, बडे हो जानेपर भविष्यमें भी मस्तिष्कके रोग और शरीरकी रोग निरोधक क्षमता ,स्वास्थ्य, और व्यक्तित्वके निर्माणमें अत्यधिक महत्व बताया जाता है | बाल्य कालके रोग (Pediatric disease) आजकल भारत वर्षमें ही नहीं सारे विश्वमें, जन्मोपरान्त बच्चोंमें जो Autism (बोध अक्षमता ) और Diabetes type1 (मधुमेह) जैसे रोग बढ रहे हैं उनका स्पष्ट कारण ए1 दूध का बीसीएम7 पाया गया है | वयस्क समाजके रोग (Adult disease) मानव शरीरके सभी metabolic degenerative disease शरीरके स्वजन्य रोग जैसे उच्च रक्त चाप (high blood pressure) हृदय रोग (Ischemic Heart Disease) तथा मधुमेहका (Diabetes) प्रत्यक्ष सम्बंध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है | यही नहीं बुढापेके मानसिक रोग भी बचपनमें ए1 दूधका प्रभावके रूपमें भी देखे जा रहे हैं | सम्पूर्ण विश्वमें डेयरी उद्योग आज चुपचाप अपने पशुओंकी प्रजनन नीतियोंमें ” अच्छा दूध अर्थात् BCM7 मुक्त ए2 दूध “ के उत्पादनके आधारपर परिवर्तन ला रहा हैं | वैज्ञानिक शोध इस विषयपर भी किया जा रहा है कि किस प्रकार अधिक ए2 दूध देनेवाली गौओंकी प्रजातियां विकसित की जा सकें | डेरी उद्योगकी भूमिका मुख्य रूपसे यह हानिकारक ए1 दूध होल्स्टिन फ्रीज़ियन प्रजातिकी गायमें ही मिलता है, यह भैंस जैसी दीखनेवाली, अधिक दूध देनेके य कारण सारे डेरी उद्योगकी पसन्दीदा गाय है | होल्स्टीन, फ्रीज़ियन दूधके ही कारण लगभग सारे विश्वमें डेरीका दूध ए1 पाया गया | विश्वके सारे डेरी उद्योग और राजनेताओंकी आज यही कठिनाई है कि अपने सारे ए1 दूध को एक दम कैसे अच्छे ए2 दूधमें कैसे परिवर्तित करें | आज विश्वका सारा डेरी उद्योग भविष्यमें केवल ए2 दूधके उत्पादनके लिए अपनी गौओंकी प्रजातिमे नस्ल सुधारके नये कार्यक्रम चला रहा है | विश्व बाज़ारमे भारतीय नस्लके गीर वृषभोंकी इसलिए अत्यधिक मांग भी हो गयी है | साहीवाल नस्लके अच्छे वृषभकी भी बहुत मांग बढ गयी है | सबसे पहले यह अनुसंधान न्यूज़ीलेंडके वैज्ञानिकोंने किया था; परन्तु वहांके डेरी उद्योग और सरकारी तंत्रकी मिलीभगतसे यह वैज्ञानिक अनुसंधान छुपानेके प्रयत्नोंसे उद्विग्न होनेपर, वर्ष २००७ में Devil in the Milk-illness, health and politics A1 and A2 Milk” नामकी पुस्तक कीथ वुड्फोर्ड द्वारा न्यूज़ीलेंडमें प्रकाशित हुई | ऊपर उल्लेखित पुस्तकमें विस्तारसे लगभग तीस वर्षोंके विश्व भरके आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और रोगोंके अनुसंधानके आंकडोंके आधारपर यह सिद्ध किया जा सका है कि बीसीएम7 युक्त ए1 दूध मानव समाजके लिए विषतुल्य है | इन पंक्तियोंके लेखकने भारतवर्षमें २००७ में ही इस पुस्तकको न्युज़ीलेंडसे मंगा कर भारत सरकार और डेरी उद्योगके शीर्षस्थ अधिकारियोंका इस विषयपर ध्यान आकर्षित कर, देसी गायके महत्वकी ओर वैज्ञानिक आधारपर प्रचार और ध्यानाकर्षणका एक अभियान चला रखा है; परन्तु अभी भारत सरकारने इस विषयको गम्भीरतासे नही लिया है | डेरी उद्योग और भारत सरकारके गोपशु पालन विभागके अधिकारी व्यक्तिगत स्तरपर तो इस विषयको समझने लगे हैं; परंतु भारतवर्षकी और डेरी उद्योगकी नीतियोंमें परिवर्तित करनेके लिए जिस नेतृत्वकी आवश्यकता होती है उसके लिए तथ्योंके अतिरिक्त सशक्त जनजागरण भी आवश्यक होता है इसके लिए जन साधारणको इन तथ्योंके बारेमे अवगत कराना भारत वर्षके हर देश प्रेमी गोभक्तका दायित्व बन जाता है | विश्व मंगल गो ग्रामयात्रा इसी जन चेतना जागृतिका शुभारम्भ है | देसी गायसे विश्वोद्धार भारत वर्षमें यह विषय डेरी उद्योगके गले सरलतासे नही उतर रहा,हमारा सम्पूर्ण डेरी उद्योग तो प्रत्येक प्रकारके दूधको एक जैसा ही समझता आया है | उनके लिए देसी गायके ए2 दूध और विदेशी ए1 दूध देनेवाली गायके दूधमें कोई अंतर नही होता था | गाय और भैंसके दूधमें भी कोई अंतर नहीं माना जात,सारा ध्यान अधिक मात्रामें दूध और वसा देनेवाले पशुपर ही होता है | किस दूधमें क्या स्वास्थ्य नाशक तत्व हैं, इस विषयपर डेरी उद्योग कभी सचेत नहीं रहा है | सरकारकी स्वास्थ्य संबन्धित नीतियां भी इस विषयपर केंद्रित नहीं हैं | भारतमें किए गए NBAGR (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा एक प्रारंभिक अध्ययनके अनुसार यह अनुमान है कि भारत वर्ष में ए1 दूध देने वाली गौओंकी संख्या पंद्रह प्रतिशतसे अधिक नहीं है | भरत्वर्षमें देसी गायोंके संसर्गकी संकर नस्ल ज्यादातर डेयरी क्षेत्रके साथ ही हैं | आज सम्पूर्ण विश्वमें यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्थामें बच्चोंको केवल ए2 दूध ही देना चाहिये | विश्व बाज़ारमें न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ,जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूधके मूल्य साधारण ए1 डेरी दूधके यदामसे कही अधिक हैं | ए2 से देने वाली गाय विश्वमें सबसे अधिक भारतवर्षमें पाई जाती हैं | यदि हमारी देसी गोपालनकी नीतियोंको समाज और शासनका प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहारका निर्यात भारतवर्षसे किया जा सकता है | यह एक बडे आर्थिक महत्वका विषय है
Posted byKumar Gaurav
भारतीय गाय इस धरती पर सभी गायो मे सर्वश्रेष्ठ क्यूँ है ?
भारतीय गाय इस धरती पर सभी गायो मे सर्वश्रेष्ठ क्यूँ है ?
यह जानकार आपको शायद झटका लगेगा की हमने अपनी देशी गायों को गली-गली आवारा घूमने के लिए छोड़ दिया है । क्यूंकी वे दूध कम देती हैं । इसलिए उनका आर्थिक मोल कम है , लेकिन ब्राज़ील हमारी इन देशी गायो की नस्ल का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है । जबकि भारत अमेरिका और यूरोप से घरेलू दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए विदेशी प्रजाती की गायों का आयात करता है । वास्तव मे 3 महत्वपूर्ण भारतीय प्रजाती गिर, कंकरेज , व ओंगल की गाय जर्सी गाय से भी अधिक दूध देती हैं ।
यंहा तक की भारतीय प्रजाती की गाये होलेस्टेन फ्राइजीयन जैसी विदेशी प्रजाती की गाय से
भी ज्यादा दूध देती है । और भारत विदेशी प्रजाती की गाय का आयात करता है जिनकी रोगो से लड़ने की क्षमता ( वर्ण संकर जाती के कारण ) भी बहुत कम होती है ।
हाल ही मे ब्राज़ील मे दुग्ध उत्पादन की प्रतियोगिता हुई थी जिसमे भारतीय प्रजाती की गिर ने गाय एक दिन मे 48 लीटर दूध दिया । तीन दिन तक चली इस प्रतियोगिता मे
दूसरा स्थान भी भारतीय प्राजाती की गाय गिर को ही प्राप्त हुआ । इस गाय ने एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया । तीसरा स्थान भी आंध्रप्रदेश के ओंगल नस्ल की गाय ( जिसे ब्राज़ील मे नेरोल कहा जाता है ) को मिला उसने भी एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया ।
केवल ज्यादा दुग्ध उत्पादन की ही बात क्यूँ करे ? भारतीय नस्ल की गाय स्थानीय महोल मे अच्छी तरह ढली हुई हैं वे भीषण गर्मी भी सह सकती हैं । उन्हे कम पानी चाहिए , वे दूर तक चल सकती हैं । वे अनेक संक्रामक रोगो का मुक़ाबला कर सकती हैं । अगर उन्हे
सही खुराक और सही परिवेश मिले तो वे उच्च उत्पादक भी बन सकती हैं । हमारी देशी गयो मे ओमेगा -6 फेटी एसीड्स होता है जो केंसर नियंत्रण मे सहायक होता है ।
विडम्बना देखिए ओमेगा -6 के लिए एक बड़ा उद्योग विकसित हो गया है जो इसे केपसूल की शक्ल मे बेच रहा है । , जबकि यह तत्व हमारी गायो के दूध मे स्वाभाविक ( हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा विकसित कहना ज्यादा सही होगा ) रूप से विद्यमान है । आयातित गायो मे इस तत्व का नामोनिशान भी नही होता ।
न्यूजीलेंड के वेज्ञानिकों ने पाया है की पश्चिमी नस्ल की गायो के दूध मे ' बेटा केसो मार्फीन ' नामक मिश्रण होता है । जिसकी वजह से अल्जाइमर ( स्मृती लोप ) और पार्किसन जैसे रोग होते हैं ।
इतना ही नही भारतीय नस्ल की गायो का गोबर भी आयातित गयो की तुलना मे श्रेष्ठ है । जो एसा पंचागभ्य तैयार करने के अनुकूल है जो रासायनिक खादों से भी बेहतर विकल्प है ।
पिछली सदी के अंत मे ब्राज़ील ने भारतीय पशुधन का आयात किया था । ब्राज़ील गई गायो मे गुजरात की गिर और कंकरेज नस्ल तथा आन्ध्रप्रदेश की ओंगल नस्ल की गाय शामिल थी । इन गायों को मांस के लिए ब्राज़ील ले जाया गया था । लेकिन जब वे ब्राज़ील पहुची तो वंहा के लोगो को एहसास हुआ की इन गायों मे कुछ खास है ।
अगर भारत मे विदेशी जहरीली वर्ण संकर नस्ल की गायों के बजाय भारतीय नस्ल की गायो पर ध्यान दिया होता तो हमारी गायें न केवल आर्थिक रूप से व्यावहारिक होती बल्कि हमारे यंहा की खेती और फसल की दशा भी व्यावहारिक व लाभदायक होती । मरुभूमि के अत्यंत कठिन माहोल मे रहने वाली थारपारकर जैसी नस्ल की गाये उपेक्षित न होती । आज दुग्ध उत्पादन ही नही प्रत्येक क्षेत्र मे आत्म निर्भरता प्राप्त करने के लिए विदेशी नस्ल ( मलेच्च्यो- मुसालेबीमान व किसाई ) और उनके सहायक चापलूस हन्दुओ से ज्यादा विनाशकारी और कुछ नही हो सकता ।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है की भारतीय सारकर हर क्षेत्र मे पूर्व निर्धारित षड्यंत्र के तहत
गलत नीती अपनाकर चल रही है ।
यह जानकार आपको शायद झटका लगेगा की हमने अपनी देशी गायों को गली-गली आवारा घूमने के लिए छोड़ दिया है । क्यूंकी वे दूध कम देती हैं । इसलिए उनका आर्थिक मोल कम है , लेकिन ब्राज़ील हमारी इन देशी गायो की नस्ल का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है । जबकि भारत अमेरिका और यूरोप से घरेलू दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए विदेशी प्रजाती की गायों का आयात करता है । वास्तव मे 3 महत्वपूर्ण भारतीय प्रजाती गिर, कंकरेज , व ओंगल की गाय जर्सी गाय से भी अधिक दूध देती हैं ।
यंहा तक की भारतीय प्रजाती की गाये होलेस्टेन फ्राइजीयन जैसी विदेशी प्रजाती की गाय से
भी ज्यादा दूध देती है । और भारत विदेशी प्रजाती की गाय का आयात करता है जिनकी रोगो से लड़ने की क्षमता ( वर्ण संकर जाती के कारण ) भी बहुत कम होती है ।
हाल ही मे ब्राज़ील मे दुग्ध उत्पादन की प्रतियोगिता हुई थी जिसमे भारतीय प्रजाती की गिर ने गाय एक दिन मे 48 लीटर दूध दिया । तीन दिन तक चली इस प्रतियोगिता मे
दूसरा स्थान भी भारतीय प्राजाती की गाय गिर को ही प्राप्त हुआ । इस गाय ने एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया । तीसरा स्थान भी आंध्रप्रदेश के ओंगल नस्ल की गाय ( जिसे ब्राज़ील मे नेरोल कहा जाता है ) को मिला उसने भी एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया ।
केवल ज्यादा दुग्ध उत्पादन की ही बात क्यूँ करे ? भारतीय नस्ल की गाय स्थानीय महोल मे अच्छी तरह ढली हुई हैं वे भीषण गर्मी भी सह सकती हैं । उन्हे कम पानी चाहिए , वे दूर तक चल सकती हैं । वे अनेक संक्रामक रोगो का मुक़ाबला कर सकती हैं । अगर उन्हे
सही खुराक और सही परिवेश मिले तो वे उच्च उत्पादक भी बन सकती हैं । हमारी देशी गयो मे ओमेगा -6 फेटी एसीड्स होता है जो केंसर नियंत्रण मे सहायक होता है ।
विडम्बना देखिए ओमेगा -6 के लिए एक बड़ा उद्योग विकसित हो गया है जो इसे केपसूल की शक्ल मे बेच रहा है । , जबकि यह तत्व हमारी गायो के दूध मे स्वाभाविक ( हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा विकसित कहना ज्यादा सही होगा ) रूप से विद्यमान है । आयातित गायो मे इस तत्व का नामोनिशान भी नही होता ।
न्यूजीलेंड के वेज्ञानिकों ने पाया है की पश्चिमी नस्ल की गायो के दूध मे ' बेटा केसो मार्फीन ' नामक मिश्रण होता है । जिसकी वजह से अल्जाइमर ( स्मृती लोप ) और पार्किसन जैसे रोग होते हैं ।
इतना ही नही भारतीय नस्ल की गायो का गोबर भी आयातित गयो की तुलना मे श्रेष्ठ है । जो एसा पंचागभ्य तैयार करने के अनुकूल है जो रासायनिक खादों से भी बेहतर विकल्प है ।
पिछली सदी के अंत मे ब्राज़ील ने भारतीय पशुधन का आयात किया था । ब्राज़ील गई गायो मे गुजरात की गिर और कंकरेज नस्ल तथा आन्ध्रप्रदेश की ओंगल नस्ल की गाय शामिल थी । इन गायों को मांस के लिए ब्राज़ील ले जाया गया था । लेकिन जब वे ब्राज़ील पहुची तो वंहा के लोगो को एहसास हुआ की इन गायों मे कुछ खास है ।
अगर भारत मे विदेशी जहरीली वर्ण संकर नस्ल की गायों के बजाय भारतीय नस्ल की गायो पर ध्यान दिया होता तो हमारी गायें न केवल आर्थिक रूप से व्यावहारिक होती बल्कि हमारे यंहा की खेती और फसल की दशा भी व्यावहारिक व लाभदायक होती । मरुभूमि के अत्यंत कठिन माहोल मे रहने वाली थारपारकर जैसी नस्ल की गाये उपेक्षित न होती । आज दुग्ध उत्पादन ही नही प्रत्येक क्षेत्र मे आत्म निर्भरता प्राप्त करने के लिए विदेशी नस्ल ( मलेच्च्यो- मुसालेबीमान व किसाई ) और उनके सहायक चापलूस हन्दुओ से ज्यादा विनाशकारी और कुछ नही हो सकता ।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है की भारतीय सारकर हर क्षेत्र मे पूर्व निर्धारित षड्यंत्र के तहत
गलत नीती अपनाकर चल रही है ।
Posted byKumar Gauravat5:07 AM
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